Atmadharma magazine - Ank 231
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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पोष : २४८९ : १९ :
भगवान श्री ऋषभदेवनी
७मा भवे
सम्यग्दर्शनी महान प्रेरणादायक कथा.
हे भव्य! आ सम्यग्दर्शनरूपी रत्नमाळाने तुं पोताना हृदयमां धारण कर. –
आ भरतक्षेत्रना आदि तीर्थंकर–आदि ब्रह्माश्री ऋषभदेव
भगवानना ७मा भवनी आ कथा छे. तेओश्रीए वज्रजंघराजानी पर्यायमां
पोताना धर्मपत्नी श्रीमती सहित बे मुनिराजोने विधिपूर्वक आहारदान दीधुं
हतुं. पात्रदाननी विशेषताथी, आयु पूर्ण थतां,, आ दम्पती भोगभूमिमां
उत्पन्न थया. भोगभूमिमां तेओ बन्ने महाकल्याणकारी सम्यग्दर्शननी केवी
रीते प्राप्ति करे छे तेनुं आ सुंदर वर्णन छे.
[जेनो अपार महिमा छे, तेनुं वर्णन वांचतां वांचतां पात्र जीवने
एक समय वज्रजंघ आर्य पोतानी पत्नी सहित कल्पवृक्षनी शोभा निहाळतां थकां एक क्षण
मात्र बेठा हता, एटलामां सूर्यप्रभदेवनुं आकाशमां जतुं विमान देखीने तेमने पोतानी पत्नीनी
साथोसाथ ज जातिस्मरण थई गयुं अने ए ज क्षणे बंनेने संसार स्वरूपनुं वास्तविक ज्ञान थई गयुं.
ए ज समये वज्रजंघे दूरथी आवी रहेला बे चारणऋद्धिधारी मुनिओने जोया, ते मुनिओ पण तेमना
पर कृपा करीने आकाशमार्गमांथी नीचे ऊतरी पड्या. वज्रजंघनो जीव एमने आवता देखीने जलदी
ऊभो थई गयो. सत्य ए छे के वर्तमानमां विवेक जाग्रत करे तो पूर्वजन्मना संस्कार कारण बने छे.
बन्ने मुनिओना समक्ष पोतानी पत्नी सहित ऊभा रहेला तेओ एवा शोभायमान थई रह्या
हता के जाणे ऊगता सूर्य अने प्रतिसूर्य समक्ष कमलिनी सहित दिवस शोभायमान होय छे..
वज्रजंघना जीवे बंने मुनियोना चरणयुगलमां परम हर्ष सहित भक्तिथी अर्ध चडाव्यो, अने
नमस्कार कर्या. आ समये एमना नेत्रमांथी हर्षनां आंसु नीकळी नीकळीने