
पोताना धर्मपत्नी श्रीमती सहित बे मुनिराजोने विधिपूर्वक आहारदान दीधुं
हतुं. पात्रदाननी विशेषताथी, आयु पूर्ण थतां,, आ दम्पती भोगभूमिमां
उत्पन्न थया. भोगभूमिमां तेओ बन्ने महाकल्याणकारी सम्यग्दर्शननी केवी
रीते प्राप्ति करे छे तेनुं आ सुंदर वर्णन छे.
साथोसाथ ज जातिस्मरण थई गयुं अने ए ज क्षणे बंनेने संसार स्वरूपनुं वास्तविक ज्ञान थई गयुं.
ए ज समये वज्रजंघे दूरथी आवी रहेला बे चारणऋद्धिधारी मुनिओने जोया, ते मुनिओ पण तेमना
पर कृपा करीने आकाशमार्गमांथी नीचे ऊतरी पड्या. वज्रजंघनो जीव एमने आवता देखीने जलदी
ऊभो थई गयो. सत्य ए छे के वर्तमानमां विवेक जाग्रत करे तो पूर्वजन्मना संस्कार कारण बने छे.
वज्रजंघना जीवे बंने मुनियोना चरणयुगलमां परम हर्ष सहित भक्तिथी अर्ध चडाव्यो, अने
नमस्कार कर्या. आ समये एमना नेत्रमांथी हर्षनां आंसु नीकळी नीकळीने