
चरणोनुं प्रक्षालन ज करी रह्यां होय. पोतानी पत्नी सहित प्रणाम करतां आर्य वज्रजंघने ते बन्ने
मुनिओ आशिर्वाद द्वारा आश्वासन आपीने मुनिओना योग्य स्थान पर क्रमसर बेसी गया.
के जाणे ते पुष्पांजली पाथरी रह्या होय! ते बोल्या–हे भगवान! आप क्यांना रहेवावाळा छो? आप
क्यांथी अहीं पधार्या छो? अने आपने अहीं पधारवानुं शुं प्रयोजन छे? आ बधुं मने कहो.
थतां ज वडील मुनि पोताना दांतोना किरणरूपी जळना समूहथी एना शरीरनुं प्रक्षालन करता थका
नीचे प्रमाणे जवाब देवा लाग्या.
पछी विशेष सम्यग्ज्ञान प्राप्त करीने में दीक्षा धारण करी हती, अने आयुष्यना अंतमां संन्यासपूर्वक
शरीरने छोडीने सौधर्मस्वर्गना स्वयंप्रभ विमानमां मणिचूल नामनो देव थयो हतो. त्यां मारूं आयुष्य
एक सागरथी कांईक अधिक हतुं. त्यार पछी त्यांथी च्युत थईने भूलोकमां उत्पन्न थयो छुं. जंबुद्वीपना
पूर्व विदेह क्षेत्रमां रहेला पुष्कलावती देश संबंधी पुंडरीकिणी नगरीमां प्रियसेन राजा अने एनी
पटराणी सुंदरीदेवीने त्यां प्रीतिंकर नामनो मोटो पुत्र थयो छुं, अने आ महातपस्वी प्रीतिदेव मारा
नाना भाई छे. अमे बंने भाईओए पण स्वयंप्रभ नामना तीर्थंकर जिनेन्द्र भगवान पासे दीक्षा
अंगीकार करी, तप बळथी अवधिज्ञान अने आकाशगामीनी चारणऋद्धि प्राप्त थई छे.
सम्यग्दर्शन विना केवल पात्रदाननी विशेषताथी अहीं उत्पन्न थयो छे–ए चोक्कस मान. महाबलना
भवमां तें अमाराथी तत्त्वज्ञान प्राप्त करीने, शरीर छोड्युं हतुं. परंतुए समये भोगोनी आकांक्षाना
वशे तुं सम्यग्दर्शननी विशुद्धिने प्राप्त करी शक्यो न हतो. हवे अमे बंने, जे सर्वश्रेष्ठ तथा स्वर्ग अने
मोक्षसुखनुं मूख्य कारण छे एवा सम्यग्दर्शनने आपवानी ईच्छाथी अहीं आव्या छीए तेथी हे आर्य,
आ अत्यारे ज सम्यग्दर्शन ग्रहण कर. एने ग्रहण करवानो आ समय छे. कारण के काळलब्धि विना
आ संसारमां जीवोने सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थती नथी. ज्यारे × देशनालब्धि अने * काललब्धि आदि
बहिरंग कारण तथा करणलब्धिरूप अंतरंग कारणरूप सामग्रीनी प्राप्ति थाय छे त्यारे आ भव्य प्राणी
विशुद्ध सम्यग्दर्शननो धारक थई शके छे. जे जीवनो आत्मा अनादिकाळथी लागेला मिथ्यात्वरूपी
* काळ लब्धि=धर्म लब्धिकाळ, निज शुद्धात्म सन्मुख परिणाम (निज परिणाम) नी प्राप्ति.