: २ : आत्मधर्म: २३१
उत्कृष्ट धर्म मंगळदर्शक
उत्साहमय मंगळवाणी.
श्री समयसारजी शास्त्र पर १४मी वार प्रवचन शरू थतां मंगळवाणीरूपे
प्रथम गाथा उपर पू. गुरुदेवनुं प्रवचन.
वंदित्तुसव्वसिद्ध घुवमचलमणोवमं गइ पत्ते।
वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुयकेवलिमणियं।।१।।
ध्रुव अचलने अनुपम गति पामेल सर्वे सिद्धने.
वंदी कहुं श्रुतकेवली–कथित आ समयप्राभृत अहो! १.
श्री आचार्यदेव अनंता सर्व सिद्ध परमात्माओने याद करीने, द्रष्टिमां सामे लावीने, विनयथी
कहे छे के हुं ध्रुव, अचळ अनेत्र अनुपमगति एटले स्वभावथी ज उत्पन्न संपूर्ण शुद्धआत्म परिणति
तेने प्राप्त थयेला एवासर्व सिद्ध परमेष्ठी सिद्ध भगवंतोने नमस्कार करी, अहो! श्रुतकेवळीओए
कहेला आ समयसार नामना प्राभृत–अधिकारने कहीश.
भगवान श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव नग्न दिगम्बर मुनि भागलिंगी संत हता, जेमनुं स्थान
मंगळाचरणमां गौतम गणधर पछी तुर्तज आवे छे, जेमणे भरतक्षेत्रमां केवळीना विरहने भूलावे
एवा श्रुतामृतना धोरिया वहेवडाव्या छे. श्री जयसेनाचार्यदेव कहे छे के जयवंत वर्तो ते पद्मनंदी
(कुन्दकुन्द) आचार्य के जेमणे महातत्त्वथी भरेलो प्राभृतरूपी पर्वत बुद्धिरूपी शिर पर उपाडी
भव्यजीवोने समर्पित कर्यो छे, जेओ विक्रम संवत ४९मां हता, तेओ जंगलमां वसता हता,
मद्रासथी ८० माईल, कांजीवरमथी ४० माईल पौनुर हील (सुवर्णनो पहाड) छे त्यां ध्यानमां
बेसीने महाविदेहक्षेत्र स्थित श्री सीमंधर भगवानने याद करता हता. त्यां “सत्यधर्मनी वृद्धि
थाओ” एवा आशीर्वादनो संदेशो लईने पूर्वभवना मित्रो–बे देवो महाविदेहक्षेत्रथी आवेला. पछी
पोतानी चारण ऋद्धिना बळथी तेओश्री श्री महाविदेहक्षेत्र ज्यां अत्यारे पण साक्षात् देहसहित श्री
सीमंधर परमात्मा “नमो अर्हंताण” तीर्थंकरपदमां बिराजे छे तेमनी पासे गया हता, आठ दिवस
त्यां रह्या हता. त्यांथी अहीं भरतक्षेत्रमां आवीने श्री समयसारजी आदि शास्त्रो रच्यां; तेमां प्रथम
महामंगळीक गाथा शरू करतां “वंदितु सव्वसिद्धे” एवो भावअने विकल्प (शुभराग) ऊठ्यो
पोताना कारणे, अने अक्षरो लखाणा ते एना कारणे एमां आ ज शब्दोमां अपूर्व मंगळदर्शक
ध्वनि थवा काळे आ सूत्रनी रचना थई गई. अहो! धन्य भाग्य छे के आत्मार्थि मुमुक्षु जीवोने
परम आधारभूत तेमना शास्त्रो जेटला छे तेटला अखंडित रही गया छे. ते काळे तो वीतराग
धर्मनी महिमा केटली हशे!!
श्री अमृतचंद्राचार्य देवे महान अने सर्वोतम टीका करी छे.