Atmadharma magazine - Ank 231
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म: २३१
जेणे सिद्ध परमात्माने ओळखीने पोताना असंख्य प्रदेशमां पूर्ण विज्ञानघन भगवाननी
स्थापना करी छे तेने संयोग, संसार, विभाव, पराश्रय–व्यवहारनो अंशमात्र पण आदर अने प्रवेश
न रह्यो. जेम तपेलामां तेना माप जेटलुं लाकडानुं मजबुत चोसलुं नाखता अंदरनुं पाणी बहार
नीकळी जाय अने बीजी चीजनो प्रवेश न थाय तेम सिद्ध परमात्माने जाणी तेनो आदर कर्यो ते ज
निश्चयथी सादि अनंत निज शुद्ध आत्मानी भक्ति अने वंदना छे; तेमां विरुद्धनो आदर अने प्रवेश
कदि थतो ज नथी.
अहो! “सादि अनंत अनंत समाधि सुखमां, अनंत दर्शन ज्ञान अनंत सहित जो, अपूर्व
अवसर एवो निश्चय आवशे.”
सिद्ध भगवान अनंता थया–ने छ महीना आठ समयमां ६०८ जीव सिद्धपरमात्मदशाने पामे
ज छे. ६०८ जीव तेटला काळमां नित्यनिगोद एकेन्द्रिय शरीर छोडी, अन्य एकेन्द्रिय अथवा वसपणुं
(बे ईन्द्रियथी पंचेन्द्रियपणुं) पामे छे.
सिद्धोनी (–संसारथी मुक्त अने परमात्मदशाने प्राप्तनी) संख्या केटली के–आंगळना असंख्यमां
भागमां असंख्यात निगोदशरीर छे–तेमांथी एक शरीरना अनंतमां भागे अनंत सिद्ध छे, अने एवा
एक शरीरमां जे अनंताअनंत जीव राशि छे तेना अनंतमां भागे जीव सिद्धपरमात्मपदने पाम्या छे, ते
बधा भेदविज्ञानरूप निश्चय सिद्ध भक्तिथी पाम्या छे. जेवो वस्तुनो स्वभाव छे तेवो जाणी निर्णय करे तो
ज पोताना शुद्ध स्वरूपमां द्रष्टि दई शके अने स्वसत्ताना आलंबनवडे मोक्षमार्गने साधी जाणे.
सम्यग्दर्शन ते नानामां नानी सिद्धपरमात्मानी भक्ति छे. अहो! एक समयमां बेहद
ज्ञानानंदथी परिपूर्ण स्वभाव, जेवा सिद्ध तेवो हुं, तेमनामां शक्तिपणे अने प्रगटपणे बेहद ज्ञान सुख
छे, मारामां शक्तिपणे परिपूर्ण छे–भेदने गौण करी तेनो आश्रय छोडी, अंदर पूर्ण सिद्धपदनो
आदरअने आश्रय करवा सावधान थयो ते ज अनंता सिद्धने नमस्कार छे. वधे न सिद्ध अनंतता, घटे
न राश निगोद, जैसे के तैसे रहे, यह जिन वचन विनोद.
सिद्धनी संख्या अनंत छे. संसारी जीव अनंता अनंत छे; तेमां छ महिना ने आठ समयमां ६०८
जीव मोक्ष जाय छे, अने त्रण राशिमां असंख्य जीव छे ते संख्या अनंत संख्या सामे बहुज अल्प छे.
दरेक द्रव्यनो द्रव्यस्वभाव, गुणस्वाभाव, पर्याय स्वभाव सत् छे, स्वतंत्र छे, स्वथी छे, परथी
नथी. काळ अने क्षेत्र पण अनंत छे. आकाशद्रव्य क्षेत्रे अनंत छे. तेना अनंतक्षेत्रने कोई दिशामां कोई
प्रकारे हद नथी. काळने हद नथी. द्रव्यो बधाय अनादि अनंत सत् छे. तेनी पर्यायो पण निरंतर नवी नवी
थया करे छे तेने पण हद नथी. ज्ञाननो स्वभाव एक समयमां सर्वथा सर्वने जाणे. वस्तुनी पर्याय शक्ति
पण कोई काळे परनी अपेक्षा राखती नथी. आवो वस्तुनो स्वभाव छे. छे तेने करे कोण?
एम स्वतंत्रता, यथार्थता. अने वीतरागतानुं स्वरूप जाणी, अनंता सिद्धपरमात्मानो आदर
करीने चारित्र वैभववंत आचार्यदेव अत्यारथी ज अनंता सिद्धोने स्व–परना आत्मामां स्थापीने कथन
करे छे. स्वसन्मुख ज्ञायकपणानुं घोलन करतां करतां समयसारजी व्याख्या पूर्ण थई गई छे, तेमां धर्म
जिज्ञासु बधायने आमंत्रण आप्युं छे. एवा श्रोता लक्षमां लीधाछे के सर्वज्ञनी सत्ता अने सिद्धपणानो
आदर करे, तेनाथी विरूद्धनो (पराश्रयनो) आदर न करे.
पांचमी गाथामां कह्युं के हुं एकत्व विभक्त एवा शुद्धात्माने दर्शावुं छुं; जे स्वरूप मारा
आत्माना सर्व वैभवथी बतावुं छुं तेने तमे स्वानुभवथी प्रमाण करजो. प्रमाण न करे एवाने याद
कर्या नथी. अहीं निःसंदेह स्वानुभव प्रमाण आदि सर्व वैभवथी आत्मा बतावुं छुं तो तेने प्रमाण करे,
एमां ज रुचिवंत रहे एवा लायक श्रोतानो मेळ बताव्यो छे.