Atmadharma magazine - Ank 232
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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महा: २४८९ : ९ :
भेद छे; गुणगुणी प्रदेशपणे अभेद ज छे, किंचित् भेद नथी– एम नियतपणे, चोक्कसपणे जाणे तेनुं
नाम प्रमाणज्ञान छे.
आत्मा अनंतगुणोनो पिंड छे, तेमांथी निर्मळ सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र पर्याय केम प्रगट थाय
के “स्वानुभूत्या चकासते” पोतानी ज अनुभवरूप क्रियाथी, स्वसन्मुखताथी प्रकाशे छे. अहीं अस्तिथी
कहेतां कोई रागनी क्रियाथी, निमित्तना आश्रयथी (–व्यवहारना टेकाथी) निर्मळता न प्रगटे– एम
नास्तिनुं ज्ञान आवी जाय छे. अहो! मुनिवरो; संतोए जंगलमां रहीने अद्भूत रचना करीने धर्म
टकावी राख्यो छे.
आत्मख्याति टीका सर्वोत्तम टीका सर्वोत्तम शास्त्र छे. स्वानुभुतिथी ज धर्मनी शरूआत, वधवुं
अने टकवुं थाय छे. व्यवहार दया, दान, व्रतादि शुभरागथी पुण्य थाय, धर्म न ज थाय; छतां कोई ठेकाणे
व्यवहारथी धर्म कह्यो होय तो समजवुं के – एम नथी पण ज्यां निश्चय धर्म होय त्यां भूमिकानुसार केवुं
निमित्त होय ते बताववा उपचारथी तेम कह्युं छे. व्यवहारनो आश्रय छोडवा जेवो छे, मोक्षमार्ग माटे
एक परमार्थ, भूतार्थ स्वरूपनो ज आश्रय करवा जेवो छे एवी द्रष्टि अने भूतार्थनो आश्रय ज्ञानीने
निरन्तर होय छे. व्यवहार तेना स्थानमां होय छे पण ते छे तो वीतरागता छे एम नथी.
अरे!! ! फोगट मोहवश..........
बीजाने राजी करवा अने बीजाथी राजी थवा माटे आ जीवे अनंतवार पोतानो
महान उत्तम अवसर व्यर्थ ज गुमाव्यो छे, सारूं एटले उत्तम, हित करवानी ईच्छा राखे छे
पण अहितने ज हितमाने छे अहितना उपायने हितनो (सुखनो) उपायमाने छे तेनुं
द्रष्टान्त.
बे कुतरा हता, सफेद कुतरो शेठीयानी शेरीमां रहेतो अने मोज मजा करतो खुब
खावानुं मळतुं हतुं पण काळो कुतरो गरीब अने लोभीनी शेरीमां रहेतो हतो त्यां ते
बीलकुल दुबळो थई गयो ‘कोई घरमां आववा दे नहीं, खावानुं दे नही पण दंडाखावा
मळे. एक दिवस ते बन्ने कुतरा मळ्‌या, काळा कुतराने बहु ज दुबळो देखीने धोळा कुतराए
कह्युं के भाई तुं गरीबोनी शेरीमां रहीने दुःख केम भोगवे छे! मारी शेरीमां आवो तो
आनंदथी मजामां रहेशो, काळो कुतरो कहेवा लाग्यो के भाई हुं तो आवत पण त्यां भूख्या,
तरस्या रहीने अने लाकडीना मार खावा छतां पण बे शब्दोना नाममात्रथी मने बहु
आनंद आवे छे केमके ते शेरीमां एक सासु अने वहु रहे छे ते रोज जगडा करे छे अने
परस्पर एक बीजाथी कहे छे के – “तुं काळीया कुतरानी वहु तुं काळा कुतरानी वहु.” बस
एटला शब्दो सांभळीने हुं बधुंय दुःख भूली जाउं छुं अने तेमां मजा पडे छे. शेरी छोडवी
पोसाती नथी.
ए ज हकीकत संसार मोही प्राणीने छे संसारनी अनेक विषमताथी भरेला दुःख
भोगवे छे छतां नाम अने यशना लोभमां तथा मानादिवश पिता, पुत्र, मित्र, आदि तथा
तमे बहु भला छो वगेरे शब्दो संभळीने खुश थईने फरे छे पण हुं परथी भिन्न अनादि
अनंत चिदानंद आत्मा छुं मारामां ज सुख अने सुखनो उपाय छे तेनी रुचि पण करतो