Atmadharma magazine - Ank 232
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 25

background image
: १० : आत्मधर्म: २३२
द्रव्यना स्वभावभूत परिणामशक्ति
अने तेनी
(परमात्मपुराण उपरथी)
(गतांग र३१ थी चालु)
(आत्मद्रव्यना स्वभावभूत ध्रौव्य–व्यय–उत्पादथी स्पर्शित
सद्रश्य अने विसद्रश्य जेनुं रूप छे एवी एक अस्तित्वमात्रमयी
परिणामशक्ति नामक गुणनुं–परमात्मपुराणमां श्री दीपचंदजी साधर्मीए
परमात्मराजाना नगरनी प्रजाना रक्षकना रूपमां वर्णन कर्युं छे.)

हवे परिणाम कोटवाळ (नगररक्षक) नुं वर्णन–परिणाम कोटवाळ मिथ्यात्व परिणाम,
परपरिणाम चोरनो प्रवेश थवा देतो नथी. परपरिणाम नामनो चोर केवो छे? ते कहेवामां आवे छे के
– पोताना स्वरूपरूप परिणामनो द्रोही छे, पररूपमां सावधान थाय छे, परपदनो निवास पामीने
आत्मनिधिरत्न चोरवा माटे चतुर छे. मिथ्यात्व रागादिरूप अवस्था वडे अनाकुल सुखनो संबंध जेने
कदि थयो नथी. पररस–शुभाशुभ रागना रसनो रसिक छे, संसार जीवोने अति कठिन छे तो पण तेने
प्रिय लागे छे. पररस केवो छे? बंधनकारक, पराधीन छे, विनाशीक छे. अनादि सादि पारिणामिकताने
लीधे परम्पपरा अनादि छे. एवा परपरिणामनो प्रवेश–परिणाम कोटवाळ थवा देतो नथी.
स्वपरिणाम कोटवाळे परमात्माराजानी प्रजानी संभाळ दरेक समये करी छे तेथी तेनुं महान जतन
(रक्षण) छे.
परमात्माराजाए एक स्वरूपरूप अनंतगुणोना रक्षणनो अधिकारी परिणाम कोटवाळने
बनाव्यो छे. अमारा देशनी (–आत्मद्रव्यनी) सर्व शुद्धता परिणामोथी छे. त्यारे एम जाणीने
गुणप्रजानी अने परमात्म राजानी दरेक समये संभाळ राखे छे. सर्वगुणना घरमां प्रवेश करीने तेना
निधानने सिद्ध करीने प्रत्यक्ष तेओनो प्रभाव प्रगट करे छे. आ कोटवाळमां एवी शक्ति छे के जो जरा
वक्र थाय तो राजाना बधाय पद