Atmadharma magazine - Ank 232
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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महा: २४८९ : ११ :
अशुद्ध थई संसारीनी जेम शक्ति मंद थई जाय. माटे परिणाम कोटवाळ संपूर्ण पदने शुद्ध राखे छे.
परिणामने आधीन राजपद छे माटे परमरक्षा करवावाळो कोटवाळ छे. आ परिणाम कोटवाळमां एवी
शक्ति छे के सर्व प्रकारे राजाने, राजानी गुणरूपी प्रजाने, मंत्रीने तथा फोजदारने पोतानी शक्तिमां
मेळवीने विद्यमान राखे छे. बधा गुण पोतपोतानी महिमाने तेनाथी ज धारण करे छे. आ
परिणामशक्तिरूपी कोटवाळ द्वारा आत्मानुं सर्वस्व छे, एवी परिणामशक्ति धौव्य–उत्पाद–व्ययथी
स्पर्शित सद्रश्य–विसद्रश्यरूप होवाथी परमात्मपदनुं कारण छे माटे तेमां अपारशक्ति छे.
परमात्म राजानुं वर्णन.

परमात्म राजा पोतानी चैतन्य परिणतिरूपी स्त्रीथी रमे छे. केवी छे चेतना परिणति?
महाअनंत, अनुपम, अनाकुळ अबाधित सुख दे छे, परमात्म राजाथी मळीने एकरस थाय छे अने
परमात्म राजा पोताना अंगथी (स्वरूपथी) मेळवीने एकरूप करे छे.
प्रश्न:– जो परिणति प्रतिसमय नवी नवी थाय छे माटे परमात्म राजाने अनंत परिणति थई
त्यारे अनंत परिणतिरूपी स्त्री कहेवी जोईए.
उत्तर:– परमात्म राजा एक छे परिणतिशक्ति भविष्यकाळमां प्रगट बीजी बीजी थवानी छे पण
वर्तमानकाळमां व्यक्तरूप परिणति एक छे ते ज आ राजाने रमाडे छे. जे परिणति वर्तमाननी छे तेने
राजा भोगवे छे ते परिणति समयमात्र आत्मिक अनंतसुख दईने आत्मद्रव्यमां विलय थई जाय छे,
परमात्मामां लीन थाय छे. जेम देवने एक देवांगना विलय थाय छे त्यारे तेना स्थानमां बीजी उत्पन्न
थई जाय छे अने तेनाथी देवभोग करे छे, परंतु अहीं तो ए विशेषता छे के तेनी देवांगना घणोकाळ
रहे, परंतु द्रव्यमां परिणति स्त्री तो एक समयमात्र रहे अने ते देवी तो विलय थईने अन्य स्थानमां
उपजे परंतु आ परिणति तेमांज (स्वद्रव्यमां ज) समाय छे. (आ रीते परमात्म राजारूप
आत्मद्रव्यमां परिणाम शक्ति अनंत पर्याय शक्ति सहित छे.)
ते वर्तमान व्यक्त–प्रगट अपेक्षाए (वर्तमान अपेक्षाए) एक छे, अनंतरसने करे छे, स्वरूपने
वेदी स्वादमां आवी अंतरमां मळी स्वरूपमां निवास करीने पछी बीजा समयमां उत्पन्न थाय छे.
स्वरूपना शरीरमां प्रवेश करीने सुख दईने अंतर्लीन (परिणति) मळी गई, पछी उत्पन्न थईने बीजा
समयमां फरी सुख दे छे. उत्पन्न थईने स्वरूप सुखनो लाभ दईने पूर्व पर्यायना व्ययद्वारा स्वरूपमां
निवास करी ध्रुवताने पोषी (पुष्ट करी) आनंदपुंजने प्राप्त करीने स्वरसनी प्रवृत्ति करवावाळी कामिनी
हरेक समये नवा नवा स्वांग धारण करे छे, परमात्म राजानुं सकळ अंग पुष्ट करे छे.
अन्य लौकिक स्त्री तो बळनुं हरण करे छे अने आ आत्मपरिणतिरूपी स्त्री तो सदा आत्मबळ
पुष्ट करे छे. लौकिक स्त्री तो क््यारेक क््यारेक रसभंग करे छे अने आ चैतन्य परिणति स्त्री तो सदा
अखंडित रसने करे छे अने सदा आनंदने करे छे. परमात्म राजाने प्यारी सुखदेवावाळी परमराणी
अतीन्द्रिय विलास करवावाळी परिणति परमरमणीने पोतानी जाणीने पोते राजा (–आत्मद्रव्य) पण
तेनाथी दुविधापणुं (मायाचार) करे नहीं, पण पोतानुं अंग (–स्वरूप) दईने दरेक समये पोतामां–
पोताना अंगमां (–स्वरूपमां) मेळवी ले छे. राजा तो परिणतिथी मळतां ज तेनो रंगी (–तद्रूप) थाय
छे. अने राजाथी परिणति मळतां ज राजाने रंगी थाय छे अर्थात् परिणति परमात्म राजाना
स्वरूपमय ज थाय छे, एकेरसरूप अनुपम भोग भोगवे छे. परमात्म राजा अने शुद्ध परिणतिरूप
स्त्रीनो विलास, तेनुं सुख अपार छे, तेनी महिमा अपार छे. आ परमात्माराजानुं राज सदा शाश्वत
छे, अचल छे, (अनंत अव्याबाध