Atmadharma magazine - Ank 232
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म: ३३२
खरूं साधन नथी. जे खरुं साधन नथी छतां तेने व्यवहार दर्शन–ज्ञान–चारित्र केम कह्युं के
मिथ्याद्रष्टिपणुं टळ्‌या पछी गमे तेवो राग होय नहींज, कुदेवादिनो राग होय नहीं–अने निर्गं्रथ
मुनिदशामां वस्त्र पात्रादि परिग्रह सहितपणुं होय नहीं; पण शास्त्र कथित ज निमित्त–नैमित्तिक संबंध
होय छे. सर्वज्ञ कथित १८ दोष रहित देव, सुशास्त्र, सुगुरु तेनी श्रद्धा – नवतत्त्वनुं ज्ञान अने
संयमभाव होय छे तेने उचित निमित्तरूप भिन्न साधन कहेवामां आवे छे. आ रीते व्यवहारने भिन्न
साध्य साधन कहेवामां आवेल छे; अहीं पर्यायमां साध्य साधन छे. पूर्ण परमार्थदशा ते व्यवहार साध्य
छे–ने छठ्ठा गुणस्थानने योग्य व्यवहार रत्नत्रय ते भिन्न साधन अर्थात् निमित्तरूप व्यवहार साधन
छे. पूर्ण ज्ञानघन अनादि अनंत शुद्ध चैतन्यस्वरूप ते निश्चय साध्य छे. पूर्ण वीतराग न थाय त्यां
बुद्धिपूर्वक रागदशामां नव तत्त्वना विकल्प आव्या विना रहे नहीं. तेथी चारित्र दोषनी नबळाईना
कारणे मोक्षमार्गस्थने पण भेद वासीन कहेल छे. श्रद्धामां अनादिकाळथी जे रागमां एकताबुद्धि हती ते
टूटी पण चारित्रमां रागनो सर्वथा अभाव थयो नथी.
जेम चोपडानी पेटीमां कस्तुरी मूकेली, कस्तुरी पाछी आपी दीधी पण छ महिने पेटी उघाडी तो
तेनी वासना–चोपडाना पाने पाने कस्तुरीनी गंध उडी रही हती; पण ते चोपडानो मूळ स्वभाव नथी.
तेम रागादि उपाधि मारूं स्वतत्त्व नथी. परथी भेद पाडी निर्मळ ध्रुव स्वभावमां एकता करी पण
चारित्रमां रागनी गंध (वासना) रही छे. मुनिदशामां वारंवार अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव करे छे,
छतां नबळाईथी विकल्प ऊठे छे– भगवाननी भक्तिनो राग पण आवे, ते एम सूचित करे छे के उग्र
पुरुषार्थ प्रगट करेल नथी. केटलाक अंशे वितरागी दशा प्रगट थई छे, पूर्ण नथी तेथी राग टाळवानी
भावना ऊठे छे, त्यां सुगमपणे मोक्षमार्ग साधे छे एटले के नित्य सहज ज्ञानस्वभावना आश्रये,
ज्ञाताद्रष्टाना भानमां निश्चयव्यवहारनुं ज्ञान करतां करतां, आनंद स्वभाव ढळवानो प्रयत्न चालुं छे–
त्यां कई जातना विकल्पो आवे छे ते कहे छे– जेने रागनी वासना कही छे.
१. आ श्रद्धा करनार छे अने आ श्रध्धेय छे ईत्यादि विचार करे छे. सर्वज्ञ वीतराग कथित नव
तत्त्वोमां छ द्रव्य अने साचा देव गुरु शास्त्र आवी जाय छे; ते नवनुं स्वरूप विपरीत अभिप्राय रहित
थईने श्रद्धवा योग्य छे. नव पदार्थने जेम छे तेम जाणे तो अंदरमां निःशंकपणे ठरवाने समर्थ थाय
अने नवतत्त्वनी श्रद्धा होय नहीं. सर्वज्ञे कहेला नवतत्त्व, छ द्रव्यने अस्ति–नास्तिथी जाण्या विना अने
रागादि विभाव पर्याय पण पोताथी स्वतंत्रपणे करवामां आवे छे एम मान्या विना सर्व संयोग अने
रागथी भिन्न पोते अखंड ज्ञानानंद मूत्ति छे एवुं मानवानी के स्वानुभवनी ताकथत होय नहीं.
वर्तमान ज्ञाननी ताकात एवी छेत्र के जेने प्रयोजनभूत जाणे तेनो निर्णय कर्या विना रहे नहीं
सर्वज्ञ भगवाने छ जातिना द्रव्यो जोया छे तेनुं अस्तित्व सदाय छे तेमां जीव (आत्मा) सदाय चैतन्य
छे, जाणनार स्वरूपे अने बाकीना पांच अचेत छे, अजीव छे, नव तत्त्वमां जीव अजीव तो द्रव्य छे
अने आस्रव बंध संवर निर्जरा अने मोक्ष तेत्र पांच पर्यायो छे एम न माने, न ओळखे तो छ
द्रव्यस्वरूप विश्वथी पोते जुदो छे अने पोतपोतानी अनंत शक्तिथी परिपूर्ण छे एनुं ज्ञान थाय नहीं.
सर्वज्ञ भगवाने कहेल नव तत्त्वोनी ओळखाणनुं प्रयोजन तो मिथ्यात्व रागादिनी उत्पत्ति न
थाय एवा वीतराग विज्ञानमय स्वभावनी प्राप्ति छे. शुभरागना भेद आवे ते जाणवा योग्य छे. १४
गुणस्थानना भेदनी भूमिकाओ अने तेटला अंशे साधुदशा अने