महा: २३८९ : १७ :
बाधकदशाने बराबर जाणे. निश्चय व्यवहारनुं भूमिकानुसार अविरोधपणुं जाणे नही अने स्वच्छंदे
फावे तेम माने तेनी वात नथी.
श्री बनारसीदासजी वगेरे भ्रमथी पोताने परिग्रह रहित मुनि नग्न थई ओरडामां फरवा
लाग्या हता. कोई वस्त्र सहित पोताने मुनिदशा माने; कोई मात्र नग्न रही, तेना मानेला व्रतादिथी
मोक्षमार्गरूपी धर्म माने तो तेम नथी, पण मिथ्यात्वनुं महापाप बांधे छे.
प्रथम विपरित अभिप्राय रहित तत्त्वार्थश्रद्धान भावभासनरूप थवुं जोईए. श्रद्धामांथी
लागणीना लूगडां छोड; चैतन्यमां शुभ अशुभ विकल्प (लागणी) नथी, परनुं ग्रहण त्याग नथी–
एवा ज्ञानस्वरूप आत्माना भान विना शुभाशुभ लागणीने जाणे कोण? हेय, उपादेयने जाणे कोण?
सम्यग्द्रष्टिना शुभभाव पण बंधनुं कारण छे; बंधनुं कारण ते कदि शुद्धिनुं कारण थई शके नहीं.
आदर–स्विकार. श्रद्धा करवा योग्य निश्चयमां पोतानो पूर्णरूप शुद्धात्मा छे, व्यवहारमां नवतत्त्व वगेरे,
एनो यथार्थ निर्णय करी निर्विकल्प श्रद्धा द्वारा श्रद्धामां पूर्ण निर्दोष थयो पण चारित्रमां पूर्ण
वीतरागता नथी, तो तेनी भूमिकाने योग्य ज शुभराग अने निमित्तो निमित्तपणे होय छे; तेनाथी
विरुद्ध न होय.
अन्य मतमां तो १प भेदे मुक्ति कहीने, गमे तेवो वेश, व्यवहार होय तो पण तेने मोक्षमार्गी
मानी ले छे एवुं वीतरागना मार्गमां नथी.
निश्चयनय मान्या पछी, परद्रव्य क्यां नडे छे? मांस, मदिरा, स्त्री रात्रीभोजन वगेरे शुं नडे
छे? निश्चयमां एक द्रव्य बीजा द्रव्यने अडतुं नथी, करतुं नथी, भोगवतुं नथी, स्त्रीनो परिचय शुं नडे
छे? भगवाने कह्युं छे के परद्रव्य–परक्षेत्र नडता नथी. अमे तो परीक्षा करीए छीए; पण एतो
अज्ञानी जीव माने के झेर खाईने जीवाशे एना जेवुं छे. स्वच्छंदी थईने शास्त्रनी; निश्चयनयनी ओथ
ले छे ते अनंतसंसारी पापी ज छे.
एक साधु वेशधारी आव्याने कह्युं के निश्चयमां ज मजा छे, माटी, मांस, रोटला, स्त्री, पुरुष
मश्करी करे छे अथवा निश्चयद्रष्टिना नामे संसारमां तीव्र मोह ममता राखे छे, तेने माटे वीतरागनो
मार्ग नथी.
दहीं वलोववानी मंथाणीने दोरी एक अने तेना छेडा बे होय छे; एकने ढीलुं राखी एकने
खेंचवानुं होय छे, पण सर्वथा एकने ज खेंचे तो माखण थाय नहीं, तेम गौण मुख्य थनार निश्चय
व्यवहारनयना बे पडखानुं ज्ञान अने साधकदशामां अंशे सराग–वीतरागतानो मेळ केवो होय छे ते न
जाणे अने पोताने फावे तेम माने तो ते वीतरागनो मार्ग नथी–भले, तेओ दिग्म्बर जैन संप्रदायमां
साधुवेशमां होय तो पण जैन मार्गथी विरोधी छे.
आत्महितना साधन माटे ज मुख्य उपादेयरूप शुद्धात्माने मुख्य करी निश्चय कह्यो अने भेद–
पराश्रयने गौण करी व्यवहार कह्यो छे. व्यवहारनयनी पद्धति अने प्रयोजन जाणी, तेना आश्रये
वीतरागता नथी–एम जाणी, वीतरागता माटे, भूतार्थ निश्चयनयना आश्रये तेनो निषेध कर्यो छे– ते
वात समजे नहीं ने शास्त्रनो अर्थ करवा जाय के जुओ, शास्त्रमां पण लख्युं छे के– व्यवहारनो निषेध
छे, पर द्रव्य वडे जीवने बंधन नथी, परद्रव्यथी बंधन थशे एम मानीश तो मिथ्याद्रष्टि छो, “हे ज्ञानी,
परद्रव्यथी बंधनी शंका छोड, परद्रव्यने भोगव”, एम केम कह्युं? के त्यां तो भेदविज्ञानथी
वस्तुस्वभावने जाणी निःशंकता माटे