
श्रद्धाथी नमी पडे छे.
निरर्थक ज आ स्त्री पर्यायमां शा माटे खेदखिन्न थई रही छो? हे माता! सर्व प्रकारनी स्त्रीओमां,
रत्नप्रभाने छोडीने नीचेनी छ नरकोमां, भवनवासी, व्यंतर अने ज्योतिषी देवोमां तथा बीजी हलकी
पर्यायोमां सम्यग्द्रष्टि जीवोनी उत्पत्ति थती नथी. आ निंदनीक स्त्री पर्यायने धिक्कार छे के जे निर्ग्रंन्थ
दिगंबर मुनिधर्म पालन करवा माटे अयोग्य छे. अने जेमां विद्वानोए अडाया छाणानी (कण्डानी)
अग्निसमान कामनो संताप कह्यो छे. हे माता! हवे तुं निर्दोष सम्यग्द्रर्शननी आराधना कर अने आ
स्त्री पर्यायने छोडीने क्रमथी सात परमस्थानोने प्राप्त कर. (भावार्थ:– (१) सत्जाति (र)
सद्गृहस्थता (३) पारिव्रज्य (मुनिओना व्रत) (४) सुरेन्द्रपद (प) राज्यपद (६) अरिहन्तपद
(७) सिद्धपद आ सात परमस्थान कहेवाय छे.) सम्यग्द्रष्टि जीव क्रमक्रमथी आ परमस्थानोने प्राप्त
थाय छे. आपलोक थोडा ज उत्तम भवोने धारण करीने ध्यानरूपी अग्निथी समस्त कर्मोने भस्म करी
परमपदने प्राप्त करशो.
सम्यग्दर्शनने प्राप्त करीने अत्यंत संतुष्ट थयो. ते योग्य ज छे, कारण के अपूर्व वस्तुनो लाभ
प्राणीओना महान संतोषने पुष्ट करे ज छे. जेवी रीते कोई राजकुमार तन्तुमां परोवेली–मनोहर
माळीने प्राप्त करी पोतानी राज्यलक्ष्मीना युवराज पदपर स्थित थाय छे; एवी रीते ते वज्रजंघनो जीव
पण सूत्रमां (जैनसिद्धांतमां) परोवेली मनोहर सम्यग्द्रर्शनरूपी कंठमाळाने प्राप्त करी, मुक्तिरूपी राज्य
संपदाना युवाराज पदपर स्थित थयो हतो, विशुद्ध पुरुष पर्यायना निमित्ते निर्वाण प्राप्त करवानी
ईच्छा करती थकी ते सती आर्या (श्रीमती) पण सम्यक्त्वनी प्राप्तिथी