Atmadharma magazine - Ank 232
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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महा: २४८९ : १ :
वर्ष वीसमुं : अंक : ४थो संपादक : जगजीवन बावचंद दोशी महा : २४८९
आश्रये ज्ञानीनी अशरणभावना.
पुराण पुरुषोने नमो नम:–
आ लोक त्रिविध तापथी आकुळव्याकुळ छे, झांझवाना पाणीने लेवा दोडी
तृषा छीपाववा ईच्छे छे एवो दीन छे. अज्ञानने लीधे स्वरूपनुं विस्मरण थई
जवाथी भयंकर परिभ्रमण तेने प्राप्त थयुं छे. समये समये अतुल खेद, जवरादि
रोग, मरणादि भय, वियोगादि दुःखने ते अनुभवे छे. आवी अशरणतावाळा आ
जगतने एक सत्पुरुष ज शरण छे; सत्पुरुषनी वाणी विना कोई ए ताप अने तृषा
छेदी शके नहीं एम निश्चय छे. माटे फरी फरी ते सत्पुरुषना चरणनुं अमे ध्यान
करीए छीए.
(श्री राजचंद्रजी)
दिव्यध्वनि तीर्थंकर परमात्मानी वाणी छे अने ते मुक्तिनो पंथ
बताववावाळी छे. द्रव्य–गुण–पर्यायनी स्वतंत्रता अने यथार्थतानुं स्वरूप
समजीने शाश्वत निर्मळ गुण निधान आत्मामां द्रष्टि देतां अने तेमां लीनता
करतां मुक्तिनो पंथ प्रगटे छे. सर्व भगवंतोए आ रीते मुक्ति प्राप्त करी अने
एवो ज मोक्षमार्गनो उपदेश जगतने दीधो. जे रीते भूतकाळमां अनंता आत्मा
अर्हंत वीतराग थई मुक्तिने (परमात्म दशाने) पाम्या ते ज रीते भगवाननी
वाणीमां कहेला स्वाश्रित सम्यक्रत्नत्रयमय मार्गनो जे आश्रय करशे ते अवश्य
मोक्षने पामशे.
जेवो सिद्ध परमात्मानो स्वभाव छे. तेवा ज पूर्णस्वभाववाळा आत्मा दरेक
देहमां विद्यमान छे. सिद्ध भगवानमां अने आ आत्मामां परमार्थे कांई फेर नथी,
जेटलुं सामर्थ्य सिद्ध भगवानना आत्मामां छे तेटल्रुं ज प्रत्येक आत्मामां सदाय छे.
सिद्ध परमात्मा पोताना पूर्णस्वभाव सामर्थ्यनी प्रतीत करीने, तेमां लीनता द्वारा
पूर्णज्ञान–आनंद प्रगट करी मुक्त थई गया अने अज्ञानी जीव पोताना नित्य बेहद
स्वभाव सामर्थ्यने भूलीने रागादिनो आदर वीतरागतानो अनादर, परभावोमां
कर्तुत्व तथा रागादिमां ज पोतापणुं मानीने संसारमां भटके छे.