: २ : आत्मधर्म: २३२
स्वानुभति वैभव, अनेकान्तद्वारा वस्तुनी निश्चित मर्यादा.
(समयसार शास्त्रना मंगळाचरणरूप प्रथम
कळश उपर पू. गुरुदेवनुं अद्भूत प्रवचन.)
(ता. २२–१०–६२ आसो वदी ११, सोनगढ.
मुकुंदभाई खाराना मकानमां वास्तु प्रसंग.)
“नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते” १४ मी वार श्री समयसारजी काले शरू कर्युं. तेना
मंगळीकना अपूर्व अर्थ थशे. श्री अमृतचंद्राचार्य महामुनि दिगम्बर संत हता, सर्व शास्त्रोना
पारगामी, सातिशय निर्मळ बुद्धिना धारक हता. तेमना द्वारा समयसार टीकाना साररूप कळशो
रचाया छे, ते श्लोक उपर श्री शुभचंद्राचा्र्ये परम अध्यात्म तरंगिणिमां आ प्रथम पद “नम:
समयसाराय” ना आठ अर्थ कर्या छे.
प्रथम सामान्य एक अर्थमां समयसार एटले परमात्मने नमस्कार कर्या पछी– विशेषरूपे पंच
परमेष्ठी अने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ए निर्मळ आठ पदार्थने नमस्कार करेल छे.
आ शास्त्रनुं नाम समयसार नाटक एम केम छे के जेम राजानुं संपूर्ण जीवन नाटकरूपे कहेवुं
होय तो टूंकामां साररूपे बधी वात आवी जाय तेम आ आत्मा स्वभावथी परमात्म स्वरूप छे छतां
पोतानी भूलथी अनादिथी कई रीते रखड्यो, पछी भेदविज्ञानमय अध्यात्मविद्याना बळवडे, भगवती
प्रज्ञाना बळ द्वारा साधकदशा अने सिद्धदशा केम प्रगट करे छे तेनुं वर्णन नाटकरूपे करेल छे.
नवतत्त्वमां मोक्षतत्त्व पण चिदानुंद चैतन्य राजानो स्वांग छे.
त्रणे काळ पोताना ज गुण–पर्यायपणे परिणमे तेने पदार्थ–समय कहे छे. प्रथमथी ज
अनेकान्तपणे स्वतंत्रतानो ढंढेरो छे के दरेक पदार्थ सम्यक्प्रकारे पोताना ज गुण पर्यायने पामे, प्राप्त
करे, पहोंची वळे पण कोई पदार्थ बीजाना गुण पर्यायने कांई न करी शके– एनुं नाम सम्यक् अनेकान्त
छे.
सर्वज्ञ भगवाने ज्ञानद्वारा जातिपणे छ द्रव्यो–छ पदार्थ जोया छे. द्रव्य–अनंतगुणोनो पिंड.
गुण–तेनी त्रिकाळी शक्ति, जे द्रव्यना संपूर्ण भागमां अने तेमां त्रणे काळ रहे छे. गुण प्रगट थता
नथी, पण तेनी शक्तिमांथी निरन्तर नवी नवी पर्यायो व्यक्त–प्रगट थया करे छे अने तेमां लय–व्यय
थई शक्तिरूपे रहे