Atmadharma magazine - Ank 232
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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माह: २४८९ : ३ :
छे. दरेक द्रव्य पोतानी सत्तापणे टकी रहे छे, तेना कोई अंशनो सर्वथा नाश नथी तथा तेमांथी तद्न
नवीन वस्तु उपजती नथी. तेओ सदाय पोतानी अर्थ क्रिया शक्तिथी परिपूर्ण छे तेमां कोई ईश्वर
अथवा परपदार्थनी डखल (बाधा) नथी– पराधिनता नथी. ते अनादि अनंत टकनारा छ जातिना
द्रव्योना नाम– जीव, पुद्गल. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश अने काळ. ते छ पदार्थोमां जीव
पदार्थ मूख्य छे, अने अनंत जीवो एटले आत्माओ छे तेमां सर्वोत्कृष्ट सारभूत परमात्म पदार्थ छे,
तेने समयसार–ज्ञानावरणीय आदि आठ द्रव्यकर्मरूपी मळ तथा रागद्वेष मोहरूपी भावकर्म मळ तथा
पांच प्रकारना शरीर– तेना संबंधथी मुक्त एवा सिद्ध परमात्मपदार्थने मूख्यपणे नमस्कार करतां तेमां
पांच परमेष्ठी अने रत्नत्रय पदार्थने नमस्कार आवी जाय छे.
त्रणे काळे सर्व पदार्थ समयते–पोतापणे टकीने सम्यक् प्रकारेत्र स्वाधीनपणे अयते–गमन करे
छे, परिणमे छे. जे जीवो संसारदशाथी मुक्त थई सिद्ध परमात्मा थया तेओ पण सदाय स्वसत्तापणे
टकीने निरंतर परिणमे छे. वेदान्तादि माने छे एवा कूटस्थ नथी, पण प्रत्येक समये अक्षय अनंत
आनंदने अनुभवे छे, अनंता ज्ञान सुखरूपे परिणमे छे. ग्रंथनी आदिमां एवा सर्वज्ञ परमात्माने
नमस्कार करुं छुं एम कहीं मंगळ कर्युं.
परमात्मा कोनाथी शोभायमान छे के केवलज्ञान लक्ष्मीथी परिणमेला अने स्वानुभूतिथी
शोभायमान–देदिप्यमान छे, पण कोईना कर्त्ता, भोक्ता के स्वामीत्वनी उपाधिरूपे नथी. पोतामां
शक्तिरूपे अनंत बेहद ज्ञान आनंद आदि शक्ति हती ते पूर्णानंद–प्रकाश–प्रगट प्रत्यक्ष दशारूप थईने
वर्ते छे, एम दरेक सिद्ध परमात्मा पोतानी परम महिमाथी शोभायमान छे. संसारी आत्मा पण आवी
शक्ति सहित छे, रहित नथी. जे कोई सिद्ध परमात्मा थाय छे ते निर्मळ भेदविज्ञानरूप स्वानुभूति
क्रियाथी ज थया छे.
वळी परमात्मा केवा छे के “चित् स्वभाव” दर्शन ज्ञान (–दर्शन ज्ञान वडे सर्वदर्शी अने सर्वने
जाणे एवा) स्वभावी छे; “सर्व भावान्तरच्छिदे” विश्वना सर्वपदार्थो अने तेना सर्व भावोने
(त्रिकाळवर्ति सर्व द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव सहित सर्वने) एक समयमां, एक साथे छेदी भेदीने सर्वप्रकारे
जाणे एवा संपूर्ण निर्मळज्ञान दर्शनवडे, सर्व भावोना परिच्छेदकपणे जाणनारा परमात्माने नमस्कार
हो.
कोई परमात्मानुं स्वरूप आनाथी बीजी रीते माने छे तेनो आमां निषेध थई जाय छे.
जुओ, अहीं आ प्रथमवार आ प्रकारे अर्थ थाय छे.
सर्व भावान्तरच्छिदेनो बीजो अर्थ – आत्माना भाव सिवायना बीजा बधा पदार्थो अने तेना
भावोने भावान्तरो कहेवाय छे. आ आत्मा सिवाय अनंता जीव–अजीव पदार्थो छे, ते पोताथी भिन्न
ज छे. तेने स्वभावथी निजशक्तिथी ज्ञानस्वभाववडे जुदा करे छे – जुदा छे एम जाणे छे. सर्वज्ञ
भगवान ते बधा पदार्थने प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा पृथक पृथक जेम छे तेम जाणे छे. तेमां भावायमां द्रव्य,
चित्स्वभावमां गुण अने स्वानुभूति पर्याय छे. श्लोकना चार बोलनो परमात्म पदार्थपणे अर्थ कर्यो
के आवा ज परमात्मा होय एम अस्तिथी कहेता नास्तिपक्षे बीजा परमात्मा न होय.
(१) जिन शब्दमांथी अर्हंतदेव अर्थ नीकळे छे– जेओ पूर्वोर्क्त पदार्थोने जाणे छे– अथवा गुण
पर्यायोने प्राप्त पदार्थ छे ते स्व–पर सर्वने जाणे छे, अथवा स्याद्वादरूप विद्याथी (सम्यग्ज्ञानद्वारा)
अनेकान्तमय वस्तुने वस्तुपणे जाणे छे. द्रव्य द्रव्यपणे छे, अन्य द्रव्यपणे नथी, गुण गुणपणे छे,
अन्यगुणथी नथी, पर सत्ताना आधारे नथी, प्रत्येक समये प्रगट