Atmadharma magazine - Ank 232
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म: २३२
थती द्रव्यनी पर्यायो पण स्वथी सत्पणे छे, पर पर्यायपणे नथी, द्रव्यना प्रदेश छे ते ते प्रदेशपणे छे,
बीजा प्रदेशपणे नथी. परपणे न होवुं ते कथंचित् असत्पणुं पोतानो धर्म छे. एम सम्यक् स्याद्वाद वडे
अस्ति नास्तिथी दरेक वस्तुने स्वतंत्र पदार्थ कहेल छे; जेमके द्रव्यगुण नित्य एकरूप छे, ते सामान्य
वस्तुपणे नित्य ज छे, अक्रम ज छे, काळ अपेक्षाए क्रमरूप नथी. अने प्रत्येक समये थती द्रव्यनी
पर्यायो ते क्रमसर ज छे, अक्रम नथी– एवा सम्यक् नियमने बतावे ते स्याद्वाद छे पण पर्यायना
क्रमवर्ति स्वभावने कोई अक्रमवर्ति स्वभावने कोई अक्रमवर्ति पण छे एम माने तो तेने एक पण
वस्तुनी खबर नथी, स्याद्वादनुं ज्ञान नथी.
लोक व्यवहारमां अक्रम, अकस्मात कहेवाय छे, पण सम्यग्ज्ञानमां तो जेवुं सुनिश्चित
वस्तुस्वरूप छे तेम ज मानवामां आवे छे.
जिन शब्दमां सातिशय सम्यग्द्रष्टिथी मांडीने क्षीणकषाय (१र मुं) गुणस्थान सुधी बधा
आत्माने जिन समय कहेवामां आवे छे. जेम, ७ मा गुणस्थानेथी शुक्ल ध्याननी श्रेणी चढवानी
तैयारीवाळाने सातिशय अप्रमत्त कहेवाय छे तेम सिद्ध परमात्मपद लेवानी तैयारीवाळा जे कोई छे ते
सातिशय सम्यग्द्रष्टिथी १रमा गुणस्थानवर्ति जीवने जिनसमय नामे पदार्थ कहेवामां आवे छे.
समयसार गा. ३१–३३ मां निश्चय स्तुतिना अर्थमां जितेन्द्रिय, जितमोह अने क्षीणमोहपणे
साधकदशामां वर्ते छे तेने जिन कह्या छे. अहीं ४थी १रमा गुणस्थाने वर्तता समय पदार्थोने जिन–
वीतराग–पूज्य कह्या छे. (गोम्मटसार टीकामां सम्यक्त्व सन्मुख अपूर्व करणस्थितने जिन कहेल छे,
अने प्रवचनसारमां चरणानुयोग चूलीकानी प्रथम गाथानी संस्कृत टीकामां श्री जयसेनाचार्ये सासादन
सम्यग्द्रष्टिने एकदेश जिन कहेल छे ते वात अहीं नथी.
हवे स्वानुभूतिवडे प्रकाशमाननो अर्थ करे छे के– अर्हंत सर्वज्ञ वीतराग होय छे, १८ दोष
रहित होय छे तेमां सातिशय केवली अर्हंत भगवानने समवसरण (१र प्रकारनी धर्म सभा) होय छे.
अंतरंगमां पोतानी ज्ञानानंदमय पवित्रतानी विभूति ते अनुभूति छे; बहारमां विभूति तीर्थंकरपद
तथा समवसरण होय छे– एवी दिव्य विभूतिवडे प्रकाशमान एवा जिनेन्द्र पदार्थने अमारा नमस्कार
हो. जेने ज्ञानावरणादि चार कर्मनो क्षय कर्यो छे एवा साक्षात् जिन अर्हंत परमेष्ठी समस्तने मारा
नमस्कार हो.
हवे भावाय–भा–अवाय, भा–प्रकाश, भा–नक्षत्रो र८ छे अथवा दिव्य प्रकाशवाळा चार
प्रकारना देव–भवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिक. अवयंति ए देवो भगवान पासे
समवसरणमां आवे छे अने चामर ढोळे छे, भक्ति वंदन नमस्कार करे छे– एवा विभूतिवंत जिनेश्वर
पदार्थने नमस्कार.
सर्व भावान्तरच्छिद. – सर्व पदार्थ पोतपोताना द्रव्य–गुण–पर्याय सहित छे, स्वपणे छे,
परपणे नथी एम स्वतंत्र जुदे जुदा छे, एम सर्वने जाणे छे ते अर्हंत परमात्माने नमस्कार.
हवे त्रीजो अर्थ छे– श्री सिद्ध परमात्म पदार्थने नमस्कार, तेमां पण अर्हंत परमात्म पदार्थनुं
वर्णन कर्युं तेम समजी लेवुं. छ द्रव्यमां सारभूत परमात्म पदार्थ छे.
(२) सिद्ध भगवान–समय. सम–शान्त तेने अय–प्राप्त करेल छे, जेओए समयसारने केवी
रीते प्राप्त करेल छे के पुण्यपापथी खसीने सर्वथा अन्तर्मुख थई शुक्लध्यानद्वारा परमपदने प्राप्त करेल
छे– एवा सिद्ध परमात्मा छे तेमने मारा नमस्कार छे; वळी जेमने लक्षमां लईने योगीओ– संतो
निर्विकल्प ध्यान द्वारा आत्मानुभव करे छे– एवा योगीओने सिद्ध परमात्मा सारभूत छे.