माह: २४८९ : प :
स्वानुभूति– निज वैभव जे त्रणलोकमां बीजा कोईने नथी एवी रत्नत्रयनी परिपूर्ण ऋद्धि
तेमने ज प्रगट थई छे. वळी सिद्धप्रभु पोताना अगुरुलघुगुणद्वारा दरेक समये अनंतगुणनी ऋद्धिने
पोतामां प्रकाश्या करे छे, पोताना अनंतगुणनी वृद्धि–निर्मळताने धारण करवावाळा छे “भू” वृद्धिना
अर्थमां छे, तथा मंगळ, निवास, संपदा, अभिप्राय, शक्ति, प्रादुर्भाव, गति अर्थमां पण छे.
स्वानुभूतिमां भू शब्द जुदो पाडी घणा अर्थ थाय छे. संसारनी चार गतिथी विलक्षण पांचमी
अपरगति ते सर्वथा शुद्ध दशा प्राप्त आत्मानी सिद्धगतिरूप स्वानुभूति छे. एवा जिनेश्वर सिद्ध
भगवाने नमस्कार हो.
चित्सवभावाय–सकल विमल ज्ञानज्योति वडे सर्वने (समस्त विश्वने) जाणे छे, केमके सकल
जगत ज्ञान समयमां समाई जाय छे– जणाई जाय छे.
सर्वभावान्तर+अच्छिदे=सर्व भावोने जाणवामां विच्छेद–अंतर–विग्रह पडतो नथी, अथवा
सर्व भावोने जेमां विच्छेद जणातोनथी. सर्वदा, सर्वत्र, सर्वथा सर्वने समस्त प्रकार सहित जाणे छे.
एवा अर्हंतसिद्ध पदार्थ समय छे तेमने नमस्कार हो.
प्रथम समये ज्ञान उपयोग अने पछी बीजे समये दर्शन उपयोग एम तेओने कोई काळे
दर्शनज्ञाननो विच्छेद थतो नथी अथवा ज्ञानसुखादि स्वरूपनो कदि नाश थतो नथी एवा अर्हंत अने
सिद्ध परमात्म पदार्थने नमस्कार.
(३) हवे आचार्य परमेष्ठीने समय पदार्थपणे ओळखीने नमस्कार करवामां आवे छे, के जेओ
अंतरंगमां शुद्धोपयोगरूप साधनवडे पोताना निश्चय पंचाचारने पाळे छे तथा पांच ईन्द्रियोनुं दमन,
नव प्रकारे ब्रह्मचर्यनुं पालन, चार कषायोने जितवा ईत्यादि ३६ गुणोना धारक छे, सम्यग्ज्ञान
समयद्वारा जिन शुद्धात्म सन्मुख सावधान रहे छे, अर्हंतसिद्ध आदि चेतन शुभ (–पवित्र) पदार्थमां
पोतानी समिति=सम्यक् प्रकारे यत्नाचार रूप परिणति, ते वडे आत्मस्वरूपनी रमणतामां वहे छे, जीव
अजीवादि बधा पदार्थोना भेद अने स्वरूपने समजे छे एवा सम्यक्चारित्रमय पंचाचारोनुं सम्यक्
प्रकारे पालन करवावाळा योगीओमां मूख्य आचार्यने समयसारपणे ओळखीने नमस्कार करुं छुं.
आचार्यमां आठ बोल– तेओ अर्हंत सिद्धनी जातनो अंशे स्वात्मानुभव करे छे, अंशे मोह
क्षोभ रहित अने वीतराग विज्ञानता सहित छे; एमां पांच परमेष्ठीने समयपदार्थपणुं नयविभागथी
लागु पडे छे; तथा समयसार एटले निर्मळ भेदज्ञान ज्योतिद्वारासम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रमां एक साथे
आत्माने जाणे छे अने परिणमन करे छे एवा समयसार पदार्थ समय आचार्य छे, तेमने अमारा
नमस्कार हो, एम आठ बोल आचार्य समयना थया.
तेमां स्वानुभूत्या चकासते– स्वने योग्य आत्मानुभवनो वैभव तथा ३६ गुणथी शोभायमान
छे=प्रकाशे छे. एवा जे आचार्य–उपाध्याय–साधु निज शुद्धात्मामां शान्तिना वेदन सहित छे, तेमां पण
साररूप ३६ गुणे शोभायमान एवा आचार्यने नमस्कार हो.
च्त्स्विभावाय–ज्ञानसमय–ज्ञानगुण–ज्ञानस्वभावरूप परिणति, हितावह भावने धारण
करनारा आचार्य छे जेने शुद्ध अतीन्द्रिय ज्ञान अनेआनंदनी सुधाधारा, सहज ज्ञानधारा वहे छे एवा
आचार्यने अमारा नमस्कार हो.
सर्व भावान्तरच्छिदे–स्वने योग्य निर्मळ भावश्रुत ज्ञान द्वारा सर्वने जाणे छे अने
स्वसमयस्थित ज्ञानधारामां विच्छेद पडवा देता नथी एवा आचार्य समयने अमारा नमस्कार हो.
(४) हवे उपाध्याय केवा छे के समय छे, समयते, श्रियते, समय एटले शास्त्र सिद्धांत तेने प्रकाशे