Atmadharma magazine - Ank 233
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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फागण: २४८९ : :
भण्यो होय, महाव्रत पाळे छतां रागनो कर्ता–भोक्ता अने स्वामी छे, अशुद्धताने ज अनुभवे छे,
पर्यायमां अशुद्धपणे ज परिणमे छे तेथी ते जीवद्रव्य अशुद्ध निश्चयात्मक छे.
(३) १३–१४मे गुणस्थाने केवळज्ञानी शुद्ध निश्चयात्मक शुद्ध व्यवहारी छे; त्यां पण सर्व
गुणोनुं चारित्र परमयथाख्यात थयुं नथी. तेथीय कर्ता, भोक्ता, वैभाविक शक्ति, चार प्रतिजीवी गुणो
आदि केटलाक गुणोनी पर्याय अशुद्ध छे. द्रव्य ते निश्चयअने क्षयिकभावे नव केवळलब्धि, अनंत
चतुष्टय आदि पर्यायो शुद्ध थई गई छे; अमुकगुणनी पर्यायमां अशुद्धता छे माटे व्यवहारी–एम
केवळज्ञानी शुद्ध व्यवहारी छे.
निश्चय तो द्रव्यनुं स्वरूप अने व्यवहार संसार अवस्थित भाव तेनुं वर्णन– अहीं द्रव्य निश्चय,
पर्याय बधी व्यवहार छे, तेमां निर्मळ चेतनाविलासरूप स्वाश्रित निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने
व्यवहार कहेल छे, केवळज्ञान पण सद्भूत व्यवहार नयनो विषय छे. मिथ्याद्रष्टि जीव पोतानुं स्वरूप
जाणतो नथी, तेथी परस्वरूपमां मग्न बनी, परने पोतानुं माने छे, मारी ईच्छानुंसार परद्रव्यनुं
उपजवुं, बदलवुं टकवुं, थाय एम मान्या करे छे तेथी पराश्रयना, रागना प्रेममां रोकाणो छे. पोते
नित्य, अरागी, ज्ञाता, चिदानंद प्रभु साक्षीपणे छे, एकलो ज्ञायक छुं, निमित्त अने रागना
आलंबननी मारे जरूर नथी, हुं तो तेनो अकर्त्ता छुं, स्वामीनथी ए वातनो अज्ञानी निर्धार करतो
नथी. मिथ्यात्व, पुण्य पाप आस्रव छे, अनात्मा छे. अजागृत भाव छे, चैतन्यनी जागृतिनो नाशक छे
माटे परस्वरूप छे, आत्मस्वरूप नथी– एम भावभासनरूप भेद ज्ञान करतो नथी, तेथी परस्वरूपमां
लीन थाय छे, देहनी तथा रागनी क्रियानो कर्त्ता थाय छे, अने तेमां पोतानुं अस्तित्व माने छे.
शुभराग होय तो मने निश्चय श्रद्धा–ज्ञा–नचारित्र थाय एम माने छे, तेथी ते रागादि आस्रवनी
क्रियाने पोतानुं कर्तव्य माने छे आम एकला अशुद्धभावरूपे परिणमतो होवाथी ते जीव अशुद्ध
व्यवहारी छे. महाव्रत चोकखा पाळे छतां अशुद्ध ज छे. परना कार्य में कर्या, हुं छुं तो तेमां कार्य थाय
छे, जीव ईच्छा करे तो वाणी थाय, शरीरमां कार्य थाय, हुं बीजाने समजावी दउं, हुं वाणी बोली शकुं छुं,
हुं मौन रही शकुं छुं, असद्भूत व्यवहार नयथी जीव आहार पाणी लई शके छे, छोडी शके छे एम
परना ग्रहण त्याग करनारो पोताने माने छे, परमां पोतापणुं माने छे ए रीते तेओ ज्ञातापणानो
विरोध करनार, परना कार्यमां धणी थनार मिथ्याद्रष्टि ज छे.
सम्यग्द्रष्टि जीव तो निर्मळ भेद अभ्यासनी प्रवीणताथी पोतानुं स्वरूप परोक्ष प्रमाणथी
(निःसंदेहपणे) अनुभवे छे. मतिश्रुतज्ञान सामान्यपणे परोक्ष छे पण स्वानुभव काळे प्रत्यक्ष कह्युं छे–
एवा स्वसंवेदन प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा धर्मी जीव पोतानुं अखंड चिन्मात्र स्वरूप बराबर जाणे छे,
अनुभवे छे; पण पर सत्ता अने पर स्वरूपनुं कोई कार्य पोतानुं मानतो नथी, पोताने आधीन पण
मानतो नथी पण निरन्तर ज्ञाता साक्षी ज छुं– एम निःशंकपणे माने छे. योग द्वारा एटले मन, वचन
काया तरफनुं बाह्य वलण छोडी अन्तर्मुखता वडे पोताना स्वरूपमां ध्यान, विचार, एकाग्रता, चिंतवन
आदि करे छे. ते कार्य करतां. बुद्धिपूर्वक विचार छे पण तेमां जेटला अंशे स्वाश्रित एकतानुं बळ छे ते
द्वारा पोतामां अशुद्धतानुं कार्य करे छे. पर सत्तानुं कार्य तेना काळे तेनाथी थाय छे, हुं करी शकतो नथी,
हुं निमित्त छुं तो तेमां कार्य थाय छे– एम मानतो नथी. भूमिकानुसार अशुद्धभाव (शुभाशुभभाव)
थाय छे पण तेनो कर्त्ता–भोक्ता अने स्वामी थतो ज नथी, रागादि करवा जेवा मानतो नथी पण
स्वरूपमां ध्यान, विचार, एकाग्रता आदिमां अंशे शुद्धिरूप कार्य करे छे. ते कार्य करतां, ते मिश्र
व्यवहारी कहेवाय छे.