Atmadharma magazine - Ank 233
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म: २३३
(दसलक्षणपर्व उपर पू. गुरुदेवना प्रवचन, भादरवा सुदी ७ ता. ६–९–६र गुरुवार.)
सम्यग्दर्शनपूर्वक आत्मानो मोक्ष साधनरूप वीतराग भाव ते उत्तम आर्जवधर्म अंग छे.
स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा गा. ३९६ मां कह्युं छे के जे मुनि मनमां वक्रता न चिंतवे, कायाथी वक्रता न करे,
वचनथी वक्र न बोले तथा पोताना दोषोने गोपवे नहि–छूपावे नहि पण महा मध्यस्थ साक्षीभावमां
निश्चल रहेवुं. ज्ञाता द्रष्टा स्वभावमां, सावधान रहेवुं, तेनुं नाम आर्जवधर्म छे; तेमां स्वसन्मुखताथी
परिणामोनी शुद्धता तेटलो धर्म छे अने कोई पण वातनी ओथ लई पोताना दोष छूपाववा आदि
वक्रता न थवा दे, सरलता राखे एवा शुभ परिणामने व्यवहार धर्म कहेवाय छे. अज्ञानी जीव
व्यवहारू सरलता राखे ते पुण्य छे.
खरेखर आत्मा ज्ञानानंद साक्षी छे तेना आश्रये ज लाभ छे एम न मानता बहारथी,
निमित्तथी, शुभरागथी लाभ माने, देहनी क्रियाथी धर्म माने, स्वाश्रयथी ज धर्म छे एम न मानता,
पराश्रय–व्यवहारना आश्रयथी आत्महितरूप धर्म थशे एम माने मनावे ते वक्रता छे, पोते पोताने
ठगे छे. भेदज्ञानद्वारा ध्रुव ज्ञाता–स्वभावना आश्रये ज धर्म थाय छे. भूमिकानुसार निमित्त, राग
वगेरे होय छे छतां पराश्रयथी कोई प्रकारे धर्म नथी– एम मानवुं – जाणवुं अने स्वसन्मुखतामां
वर्तवुं ते आर्यता–सरलतारूप उत्तम धर्म छे. आम विवेकज्ञान विना बाह्य सरलता पुण्य बंधनुं कारण
छे. मोक्षमार्गमां कहेल आर्जवधर्म स्वावलंबी वीतराग भाव छे अने मन–वचन–कायाना आलंबन
संबंधी सरळतानो भाव ते शुभ राग छे. रागनी, पुण्यनी रुचि छोडी, स्वाश्रयद्रष्टि अने अंदरमां
एकाग्रता द्वारा पोतानो्र शुद्ध चैतन्यना आश्रयमां सावधान रहेतां वक्रतानो भाव उत्पन्न न थवो ते
उत्तम न थवो ते उत्तम आर्जवधर्म छे.
आत्मार्थि मुमुक्षु लौकिक जीवन व्यवहारमां पण मन, वचन, कायामां सरलता राखे अर्थात्
मनमां कांई अने वचनमां बीजुं एम न करे; बीजाने भूलवणीमां नाखवा–ठगवा अर्थे विचार अने
चेष्टा करे छे ते माने छे के हुं बीजाने ठगुं छुं, खरेखर ते पोताने ज ठगे छे, धर्मी अने धर्म जीज्ञासुजीव
पोताना दोषने जाणे, कपट न करे, पोतानो दोष छूपावे नहि पण जेवो होय तेवो बाळकनी माफक
गुरुनी पासे कहे. लोकोमां सरलता राखवी, कपट न करवुं, सत्य बोलवुं एवी घणी वात आवे ते शुभ
भावनुं आचरण छे– तेनो निषेध नथी तेम ज ते उत्तम आर्जव नामे धर्म नथी.
प्रश्न– शुभभाव अने बाह्य व्यवहार करवो पडे ने?
उत्तर– ए जातना रागनी भूमिकावाळाने तेना काळे एवो राग आव्या विना रहे नहीं.
शरीर आदि जडना कार्य आत्मा कोई द्रष्टिथी करी शकतो नथी, पण माने छेके हुं तेनो कर्त्ता छुं;
हुं छुं तो तेमां व्यवस्थित कार्य थाय छे ए मान्यता मिथ्यात्व छे. सहुनी अवस्था दरेक क्षणे पलटाया
करे छे. दरेकनां कार्य तेनी योग्यता अनुसार तेनाथी थाय छे, छतां माने