Atmadharma magazine - Ank 233
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म: २३३
समतानी मोजद्वारा भावि विषयोनी चाहनारूप तृष्णा तथा वर्तमान सामग्रीमां लिप्ततारूप लोभ
एना त्यागमां स्वयं खेदरूपी मळने धोवाथी पवित्र भाव अने प्रसन्नता ज थाय छे. मुनिने अन्य
त्याग तो होय ज छे; वस्त्रादि होता ज नथी, पण आहारमां तीव्र लोभ थवा दे नहीं.
लाभ, अलाभ, सरस, निरसमां समभाव राखे, ज्ञानानंद स्वरूपमां सावधानी राखे तेथी
तेओने उत्तम शौच धमृ होय छे. ते भूमिकामां शुभ राग रह्यो ते व्यवहार धर्म छे. मिथ्याद्रष्टिना
शुभरागमां व्यवहार धर्मनो उपचार लागु पडतो नथी.
वळी स्वसंबंधी अथवा परसंबंधी जीवन लोभ, आरोग्य राखवानो लोभ, ईन्द्रियो पुष्ट
राखवाने लोभ तथा उपभोगनो लोभ एम लोभ कषायनी चार प्रकारे प्रवृत्ति होय छे. ज्या निर्मळ
ज्ञाता स्वभावनी श्रद्धा ज्ञान शान्ति द्वारा ए बधोय लोभ न होय ते उत्तम शौच धर्म छे.
अंतरंगमां प्रगट बेहद ज्ञानानंदस्वभाव समुद्रमां प्रवेश करी चारे प्रकारनो लोभ न उपजे ने
तेना स्थानमां निराकूळ आनंद ऊछळे ते संतोषधर्म छे. लोभादि कषायने टाळवा पडता नथी. जे
समये राग आव्यो तेने केम टाळे? बीजे समय गयो... तेने केम टाळवो अने हजी नथी आव्यो तेने
टाळे शुं? पण त्रिकाळी ज्ञानानंद स्वभाव जेमां कषायनो प्रवेश नथी एवा निर्मळ स्वभावमां द्रष्टि–
ज्ञान अने एकाग्रता थतां संतोष वर्ते तेनुं नाम उत्तम शौच धर्म छे.
प्रश्नोत्तर
१–प्रश्न– तमे कई अपेक्षाए एक, असंख्य, अनंत, सादिसांत, अने अनादि अनंत छो?
१–उत्तर– (१) द्रव्यपणे हुं जीव द्रव्य एक छुं, (र) क्षेत्रथी हुं नित्य असंख्य प्र्रदेशी, (३)
गुणथी अनंत, (४) प्रत्येक समये थती उत्पाद व्ययरूप पर्याय अपेक्षाए सादिसांत, अने (प)
काळथी हुं अनादि अनंत छुं.
र–प्रश्न–तमारामां काळ अपेक्षाए एक समय पूरतुं होय तेवुं अनंत अनंत पणुं होय शक्े?
र–उत्तर–हा. वर्तमान व्यक्त पर्याय एक समये एक होय छे, (एक एक गुणनी एक पर्याय
दरेक असहाय) तेमां पण सूक्ष्मभाव अपेक्षाए अविभाव प्रतिच्छेद अनंत होय छे, जेमके ज्ञान गुणनी
प्रगट पर्याय.
३–प्रश्न–तमारामां रहेला गुणोने बनी शके तेम बे विभागमां वहेंची आपो.
३–उत्तर–सामान्य–विशेष, अनुजीवी–प्रतिजीवी, क्रियावर्ती शक्ति नामे एक गुण अने भाववती
शक्तिपणे अनंत गुण. अनंत गुणमांथी केटलाक गुण पर्याय अपेक्षाए, पण त्रिकाळ शुद्ध अने केटलाक
संसार दशामां अशुद्ध, व्यंजन पर्यायवाळो एक गुण अने अर्थ पर्यायवाळा अनंत गुण.
(प्रदेशत्वगुणनी पर्यायने व्यंजन पर्याय कहेवामां आवे छे अने ते सिवायना सर्व गुणोनी पर्यायने
अर्थ पर्याय कहेवामां आवे छे)
४–प्रश्न पर्याय कोने कहे छे?
४–उत्तर–द्रव्यना अंशने – भेदने पर्याय कहे छे तेना बे प्रकार (१) सहप्रवृत्त पर्याय (जे
त्रिकाळी शक्तिरूप गुणो छे) (२) क्रमप्रवृत पर्याय जे गुणनी क्रियारूप वर्तमान एक समयनी
परिणाम, अवस्था छे, जुओ समयसार गा. र९४ तथा गाथा–र नी सं. टीका.
क्रमप्रवृत पर्यायने कि््रया परिणाम, हालत, कर्म, अवस्था, परिवर्तन अने विवर्तन पण कहेवामां
आवे छे. गुणना सक्रिय अंशने गुणना विशेषरूप कार्यने पर्याय कहेवामां आवे छे. ते क्रमप्रवृत–क्रमवर्ती
पर्याय जाणवी.
एक द्रव्यनी के गुणनी पर्याय तेमां ज थाय छे, तेनी पोतानी शक्तिथीी ज थाय छे, परथी थती
नथी एवुं अनेकान्त स्वरूप समजवुं.