फागण: २४८९ : ११ :
(पंचास्तिकाय गा. १७र उपर पू. गुरुदेवना राजकोटमां प्रवचन, ता. ४–प–६र)
ज्ञानी–अज्ञानी द्रष्टि तथा
प्रयोजनमां महान अंतर होय छे.
आ पंचास्तिकाय शास्त्रमां विश्वमां छ द्रव्योनुं यथार्थ निरूपण कर्युं छे. श्री वीतराग सर्वज्ञ
भगवाने तेमनी अचिंत्य निर्मळ ज्ञानशक्ति वडे छ जातिना द्रव्यो जाण्या जोया अने उपदेश्या छे.
आ ज द्रव्योमांथी जीव नामनो एक पदार्थ (द्रव्य) छे. आ जीव पदार्थ केवो छे ते
आचार्यश्रीए समजावेल छे आत्मा (जीव) अनादि अनंत छे तेम ज तेनी अंदर ज्ञानादि अनंत
शक्तिओ छे, ते पण सत्तात्मक छे, अनादि अनंत छे. आ बधी शक्तिओ आत्माने आधारे रही
छे. पर द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावोना आधारे कोई शक्ति नथी रही तेम साकरना गणपणनो आधार
साकर छे, डबो नथी तेम आत्माना श्रद्धा–ज्ञानादि गुणोनो आधार आत्मा छे. शरीर शुभाशुभ
राग, विकल्प के निमित्तना आधारे कोई गुणो टक्या नथी. आम ज्ञानादि अनंत गुणोनो धारक
एवो आ आत्मा विकल्प अर्थात् राग वडे समजातो नथी. द्रव्य ईन्द्रियो के बुद्धिना उघाडथी वेदाय
के जणाय एवो आत्मा नथी.
जेम कोई एक झवेरी पाणीदार साचुं मोती जोईने खुश थाय छे अने कहे छे के केवुं
पाणीदार मोती! जाणे मोजां ऊछळे छे! बाजुमां बेठेला खेडुतने झवेरी कहे छे “मने तृषा लागी
छे, पाणी आपो.” आम सांभळी खेडुत कहे छे के आपनी पासे मोतीमां पाणी छे तो मारी पासे
केम मागो छो? झवेरी हजु पोताना आनंदमां ज छे. ते कहे छे के “भाई, आ मोतीमां तो दरियो
ऊछळे छे हों.” खेडुत कहे छे “मारी आ पछेडी भींजवी आपो तो मानुं के मोतीमां पाणी छे”
आम मोतीनी परख करनार झवेरीने मोतीमां पाणीनां तरंगो देखाय छे. त्यारे मोतीनी किंमत
जेनी द्रष्टिमां नथी ते खेडुतने मोतीमां पाणी देखातुं नथी. तेम आत्मामां ज्ञान दर्शनादि अनंत
गुणो पड्या छे परंतु तेने न जाणनार, न श्रद्धनारने वर्तमान अल्पज्ञता अने अंश उपर अथवा
रागनी क्रिया उपर द्रष्टि होवाथी, पूर्ण ज्ञान आनंद स्वभावी कोण तेनी किंमत नथी तेथी
आत्माने रागी, द्वेषी, मोही ज जाणे छे, कारण के तेने तेवो अशुद्ध आत्मा ज अनुभवमां आवे
छे. परंतु भेदज्ञानी जीव छे तेने शुद्ध आत्मा अनुभवमां आवे छे. राग, द्वेषा, मोह, गुणागुणीभेद
आदि सर्व विकल्पथी