Atmadharma magazine - Ank 233
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म: २३३
आत्महितरूप मोक्षमार्ग
कोने मानवो?
(श्री समयसारजी गा. ४०८–४०९ उपर पूज्य गुरुदेवनुं प्रवचन, ता. १४–८–६र)
अन्वयार्थ बहु प्रकारना मुनिलिंगोने अथवा गृहस्थी लिंगोने ग्रहण करीने मूढ (अज्ञानी)
जनो एम माने छे के आ बाह्य लिंग (देह, देहनी क्रिया अने महाव्रतादिना शुभ विकल्प) मोक्षमार्ग
छे, परंतु लिंग मोक्षमार्ग नथी, कारण के अर्हंतदेवो देह प्रत्ये निर्मम वर्तता थका लिंगने छोडीने, दर्शन
ज्ञान चारित्रने ज सेवे छे.
टीका–श्री आचार्यदेव करूणा बुद्धिथी कहे छे के लोको द्रव्यलिंगनां एटले शुभराग–र८
मूळगुणना शुभविकल्पने मोक्षमार्ग मानता थका मोहथी द्रव्य लिंगनेज ग्रहण करे छे. के जे पद्धति
योग्य नथी.
निर्विकल्प शुद्ध ज्ञानानंद स्वरूपनुं भान नथी तेओ ज्यां धर्म नथीय त्यां आत्मानो धर्म
मानीय बाह्यवेष, नग्न शरीर, मोरपींठ, कमंडळ अने २८ मूळगुणना विकल्प अथवा क्षुल्लक आदिरूपे
संप्रदाय ना वेषने ज ग्रहण करे छे.
प्रथम सर्वज्ञ वीतराग कथित तत्त्वज्ञान द्वारा निर्मळ सम्यग्दर्शन ग्रहण करवुं जोईए तेना
भान विना आवेशमां आवी जई नग्नदशा मुनिवेष धारण करे छे. द्रव्यलिंगने मोक्षमार्ग मानीने
तेनुं ग्रहण करे छे ते ग्रहण करवुं अयोग्य छे. कोई कहे, प्रथम शुभभावमां आवे पछी निर्मळ
श्रद्धा–ज्ञान करी शके ने? माटे प्रथम आवो व्यवहार जोईए ज तो तेने तत्त्वज्ञान प्रत्ये अरुचि
छे. भगवाने तो सर्व प्रथम सम्यग्दर्शन ज आत्महित माटे प्रथम पगथीयुं कह्युं छे तेनो तेओ
विरोध करनारा छे.
जो द्रव्यलिंग, शुभरागनी क्रिया मोक्षमार्ग होत तो जीनेन्द्रदेवे, आचार्योए ते द्रव्यलिंग छे.
मोक्षमार्ग नथी एम केम कह्युं? तेमणे तो आत्माने शुद्ध ज्ञानमयपणुं होवाथी द्रव्यलिंगने आश्रयभूत
शरीर अने शुभरागनी ममतानो त्याग करी अर्थात् प्रथम श्रद्धामां अने पछी चारित्रमां तेना
आश्रयनो त्याग होवाथी, तेना आश्रयना त्याग वडे, तेमने तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
मोक्षमार्गपणे उपासना जोवामां आवे छे. वच्चे शुभ व्यवहार निमित्तपणे होय छे पण तेने छोडवाथी
मोक्षमार्ग छे अर्थात् तेनो आश्रय छोडवाथी मोक्षमागछे. शुभराग तो बाह्य निमित्तरूप छे जो ते
स्वयंमोक्षमार्ग होय तो भगवंतोए तेनो आश्रय छोडी वीतरागभावरूप मोक्षमार्गनो उपदेश केम
आप्यो छे? व्यवहारनो आश्रय, निश्चयनो आश्रय कर्या विना छूटतो नथी. आ उपरथी ए ज सिद्ध
थाय छे के द्रव्यलिंगो मोक्षमार्ग नथी पण पराश्रयथी निरपेक्ष, आत्माश्रित दर्शन–ज्ञान–चारित्र ज
(वीतरागभाव ज) मोक्षमार्ग छे एम सिद्ध थाय छे.