Atmadharma magazine - Ank 234
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २३४
थाय छे, कर्मना संगमां गयो तेथी अशुद्धता थाय छे, ते बंध पर्यायरूप व्यवहारनो आश्रय अनादिथी
करतो ज आवे छे, तेथी जीव एकलो ज संसारमां दुःख भोगवे छे. हवे त्यांथी छूटो थवा, नव तत्त्वना
भेदने गौण करी, शुद्ध नय वडे, शुद्ध ज्ञायकनो आश्रय–अनुभव करे तो सम्यग्दर्शन थाय छे. अशुद्धता
द्रव्य द्रष्टिमां गौण छे, अभूतार्थ छे, उपचार छे. माटे आत्मा द्रव्य द्रष्टिथी शुद्ध छे, अभेद छे, भूतार्थ
छे, निश्चय छे, परमार्थ छे माटे ज्ञायक ते ज्ञायक ज छे.
(१) अशुद्धपणुं तो पर द्रव्यनी संगतिथी पर्यायमां थाय छे.
(र) द्रव्य द्रष्टिथी देखो तो मूळ द्रव्य रागादिरूपे–देहादिरूपे थतुं नथी. भेदने गौण करी, शुद्ध नयथी
देखो तो सर्व अवस्थामां आत्मा तो परथी भिन्न, रागथी भिन्न, निरपेक्ष ज्ञायकपणे ज छे.
(३) आम समस्त अन्यभावो, अनात्माभावो (आस्रवभावो) थी भिन्नपणे स्वसन्मुखपणे
सेववामां (उपासवामां) आवता आत्माने शुद्ध कहेवाय छे. परथी निरपेक्ष ज्ञायकपणे जणायो
तेतो ते ज छे. सर्व अवस्थामां अन्यथी न्यारो, ज्ञान स्वभावमां सदाय एकरूप ज्ञायक ते ज हुं
छुं, अन्य कोई नथी. निश्चयमां परने जाणवुं नथी.
आम स्वसन्मुखपणे पोताने पोतानो अभेद अनुभव थयो त्यारे जाणवारूप क्रियानो कर्त्ता
पोते ज छे, पोताने जाणे छे एम स्पष्ट भावभासन थयुं. ज्ञान थवाना कारणमां रागादि निमित्त नथी
अर्थात् रागादि कारण अने तेना आश्रयथी ज्ञानरूपी कार्य थाय एम नथी. ज्ञायक रागने कर्त्ता थाय
एम पण नथी. ज्ञायक रागने कर्त्ता, भोक्ता, स्वामी नथी; पण वर्तमान पर्यायमां राग छे, व्यवहार छे
माटे ज्ञान थयुं एम पण नथी. जरीये शुभरागनी अपेक्षाथी के निमित्तनी अपेक्षाथी ज्ञान थयुं एम
नथी. परथी निरपेक्ष, स्वथी सापेक्ष, अभेद ज्ञाता ज्ञान ज्ञेयपणे जाणवारूप क्रियानो कर्ता सर्व
अवस्थामां ज्ञायक पोते ज छे, तेमां भेद नथी; तेथी प्रमत्त–अप्रमत्त, सकषाय–अकषाय, अवेदी–सवेदी
आत्मा नथी पण त्रिकाळ ज्ञायक छे. ज्ञेयोने जाणवानी अपेक्षाए ज्ञायक नाम आपवामां आवे छे,
तोपण ज्ञेयोने कारणे ज्ञायक ज्ञानरूपे परिणमे छे एम नथी. केमके जेवुं ज्ञेय ज्ञानमां प्रतिभासित थाय
छे तेमां निश्चयथी स्वज्ञानाकाररूप ज्ञान ज ज्ञानमां परिणम्युं छे एम सर्व अवस्थामां एकलो, राग
अने परनी अपेक्षा विनानो, हुं ज्ञायक ज छुं एम अनुभव करतां आत्मा सदा ज्ञायक छे एम स्पष्ट
भासे छे के ‘आ हुं जाणनारो छुं ते हुं ज छुं अन्य कोई नथी.’ एवो स्वसन्मुखपणे पोताने पोतानो
अभेद अनुभव थयो त्यारे जाणवारूप क्रियानो कर्त्ता पोते ज छे, अने जेने जाण्युं ते कर्म (ज्ञाननी
क्रियारूप कार्य) पण पोते ज छे. आवो एम ज्ञायकपणा मात्र विज्ञानघन पोते शुद्ध छे– आवो आत्मा
शुद्ध नयनो, अने निर्विकल्प सम्यग्दर्शननो विषय छे, ध्येयरूप छे. एनो आश्रय करवाथी ज धर्म
एटले सुखनी शरूआत थाय छे. आ रीते प्रथमथी ज स्वसत्तावलंबीपणाथी मोक्षमार्गनी शरूआत
थाय छे.
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