Atmadharma magazine - Ank 234
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : २४८९ : :
मोक्षमार्गनी सम्यक् व्यवस्था
अने
अनेकान्तनी स्पष्टता
प्रवचनसार शास्त्र उपर पूज्य गुरुदेवना प्रवचन भादरवा सुदी १० ता. ११–९–६र

प्रवचनसार गा. र३प मां कह्युं के आगम ज्ञाताने कांई पण गुप्त नथी, अजाण्युं नथी. हवे
आगममां शुं कहे छे तेनुं यथार्थ ज्ञान स्वसन्मुखथी ज थाय छे; तेथी आगम ज्ञान, तत्त्वार्थ श्रद्धान
अने ते बन्ने सहित संयतपणुं ए त्रणेनुं साथे होवुं ज मोक्षमार्ग छे एवो नियम सिद्ध करे छे.
गा. र३६ नी टीका आ लोकमां स्यात्कार जेनुं चिह्न छे एवा आगमज्ञान सहित
तत्त्वार्थश्रद्धानरूप सम्यग्दर्शन तेनाथी जे रहित छे ते बधायने संयमभाव ज प्रथम तो सिद्ध थतो नथी.
स्यात्कार एटले वस्तुमां रहेला प्रत्येक अंशने, जे अंश जे रूपे छे ते ते ज रूपे छे, पररूपे नथी, परथी
नथी एम अस्तिनास्तिद्वारा वस्तुमां वस्तुपणानो निश्चय करावे एवी सम्यक् अपेक्षाथी कथनपद्धति ते
स्याद्वाद छे.
आत्मा छे? के हा. पोतानाथी ज छे, परथी नथी, पोतानो द्रव्य स्वभाव–गुण स्वभाव–गुण
स्वभाव–पर्याय स्वभाव स्वथी सत् छे, परथी असत्पणे छे. त्रिकाळी सामान्य स्वभाव स्वभावथी
सत् छे, विभावथी नथी. स्वभावना आश्रये थती संवर–निर्जरारूप शुद्ध परिणति ते स्वथी छे,
शुभरागथी नथी. निमित्त छे माटे साधकदशा छे एम नथी. भगवाननुं समवसरण छे, वाणी
सांभळवा मळे छे माटे आ आत्माने सम्यग्ज्ञान उत्पन्न थाय छे एम नथी. वस्तु द्रव्यअपेक्षाए नित्य
ज छे, अनित्य नथी, शुद्ध ज छे, अशुद्ध नथी पण संसार दशामां शुभाशुभभाव ज्यां सुधी छे त्यां
भूमिकानुसार अशुद्धता छे तेटली मात्र पर्याय अपेक्षाए अशुद्धता छे. जे गुणस्थाने जेटला अंशे
अशुद्धता छे ते निश्चयथी अशुद्धता ज छे, तेमां शुद्धता नथी, तेना आधारे पण शुद्धता नथी. आत्मा
अनित्य छे? हा. अवस्था बदलवानी अपेक्षाए अनित्य ज छे, नित्य नथी ज एम एक ज समये एक
साथे एक आत्माने नित्य