प्रवचनसार गा. र३प मां कह्युं के आगम ज्ञाताने कांई पण गुप्त नथी, अजाण्युं नथी. हवे
अने ते बन्ने सहित संयतपणुं ए त्रणेनुं साथे होवुं ज मोक्षमार्ग छे एवो नियम सिद्ध करे छे.
स्यात्कार एटले वस्तुमां रहेला प्रत्येक अंशने, जे अंश जे रूपे छे ते ते ज रूपे छे, पररूपे नथी, परथी
नथी एम अस्तिनास्तिद्वारा वस्तुमां वस्तुपणानो निश्चय करावे एवी सम्यक् अपेक्षाथी कथनपद्धति ते
स्याद्वाद छे.
सत् छे, विभावथी नथी. स्वभावना आश्रये थती संवर–निर्जरारूप शुद्ध परिणति ते स्वथी छे,
शुभरागथी नथी. निमित्त छे माटे साधकदशा छे एम नथी. भगवाननुं समवसरण छे, वाणी
सांभळवा मळे छे माटे आ आत्माने सम्यग्ज्ञान उत्पन्न थाय छे एम नथी. वस्तु द्रव्यअपेक्षाए नित्य
ज छे, अनित्य नथी, शुद्ध ज छे, अशुद्ध नथी पण संसार दशामां शुभाशुभभाव ज्यां सुधी छे त्यां
भूमिकानुसार अशुद्धता छे तेटली मात्र पर्याय अपेक्षाए अशुद्धता छे. जे गुणस्थाने जेटला अंशे
अशुद्धता छे ते निश्चयथी अशुद्धता ज छे, तेमां शुद्धता नथी, तेना आधारे पण शुद्धता नथी. आत्मा
अनित्य छे? हा. अवस्था बदलवानी अपेक्षाए अनित्य ज छे, नित्य नथी ज एम एक ज समये एक
साथे एक आत्माने नित्य