Atmadharma magazine - Ank 234
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : र४८९ : ११ :
सुखी सर्व वाते, शरीर प्रथम धर्मनुं साधन छे”– ए कथन लोकपद्धतिथी छे. वस्तुस्वरूप एम नथी.
प्रश्न :– मनुष्य शरीर, वज्रकाय शरीर मोक्षनुं कारण छे के नहीं?
उत्तर :– निमित्त नैमित्तिक संबंधनुं ज्ञान कराववा माटे ए कथन छे. कार्य विना निमित्त कोनुं?
निमित्तथी कोईनुं कार्य थतुं नथी पण “उपादान (निजशक्ति) निश्चय जहां तर्हं निमित्त पर होय”
एटलुं बताववा माटे (अने तेनो आश्रय छोडी एकला आत्मानो आश्रय करवा माटे) व्यवहार
कथननी ए रीत छे.
श्री टोडरमल्लजीए पण मोक्षमार्गप्रकाशकमां कह्युं छे के व्यवहार नय अभूतार्थ कथन करे छे,
एक द्रव्यने बीजा द्रव्य रूपे वा तेना भावो ने वा कारण कार्यादिने कोईना कोईमां मेळवने निरूपण करे
छे, माटे व्यवहारना कथनने निश्चय अर्थमां मानवानी श्रद्धा छोडी दे. आ प्रमाणे टोडरमल्लजीए ज
कह्युं नथी पण परमात्मप्रकाश ग्रंथनी टीका तथा पुरुषार्थ सिद्धि उपाय तथा श्री समयसारजी गा. ११
मां पण आवे छे. के– व्यवहारनय अभूतार्थदर्शित, शुद्धनय भूतार्थ छे;
भूतार्थने आश्रित जीव, सुद्रष्टि निश्चय होय छे.
स्वभाव–विभाव अने स्व–पर नुं विभाग ज्ञान नथी तेथी अज्ञानी जीव काय अने कषायरूपे
पोताने माने छे. ज्ञानीने पण दया, हिंसा, व्रत, अव्रत, पूजा, भक्तिना विकल्प आवे पण तेनाथी
परमार्थे लाभ मानता नथी. पण रागनी रुचिवाळा अज्ञानी, रागनी क्रियाने लाभदायक माने छे तेथी
तेनी श्रद्धामां जीव अने आस्रव तत्त्व जुदा न रह्या.
आगम कहे छे के जीवथी अजीव नहीं अने अजीवथी अने आस्रवथी जीव नहीं. आस्रव बंधनुं
कारण छे, तेथी आस्रवथी संवर–निर्जरा त्रण काळमां नथी– एम एक तत्त्वमां बीजा तत्त्वनो अभाव
छे एम जाणे ते सम्यग्ज्ञानी छे. श्री दीपचंदजी साधर्मी १प० वर्ष पहेलां कही गया के सर्वज्ञ कथित
शास्त्रानुसार अत्यारे कोई मानतुं नथी, मुखथी कह्युं मानता नथी तेथी हुं तो सत्य वात लखी जाउं छुं.
हठाग्रही माटे आ कथन नथी. अध्यात्म पंच संग्रहमां तेओ लखे छे के शुभरागथी परंपराए धर्मनो
लाभ थशे एम माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे.
ज्ञानीना व्रतादि शुभरागने परंपरा मोक्ष हेतु कह्यो होय त्यां एम समजवुं के ए जातना
शुभरागनो अभाव करीने मोक्ष जशे. व्रतादि शुभरागथी मोक्षमार्गनो लाभ माननारा रागने करवा
जेवो माने छे, कषायथी लाभ माने छे. शुभरागथी लाभ मान्यो त्यां तेने आस्रव–बंधभावनो आदर
अने आत्मभावनो तिरस्कार वर्ते ज छे.
जडकर्मना उदयथी राग थाय अने शुभरागथी धर्म थाय एम माननारे जडकर्मथी धर्म थाय
एम मान्युं छे. स्व–परना विभागनो तेने अभाव छे.
ज्ञानीने शुभराग आवे छे पण अंदरमां तेने जराय हितकर मानता नथी, केमके बहिर्मुखवृत्ति
ते अंतर्मुख स्वभावने मदद करी शके नहीं. आवुं सत्य सांभळे छतां जे एम माने छे के नहीं, धर्म
खातर करेला शुभभाव धर्मनुं कारण छे, शुभराग करतां करतां अंतर्मुख थवाशे. शुं व्यवहार सर्वथा
असत्यार्थ छे? निमित्त अने शुभराग अंतर्मुख थवामां मदद करे छे, परनुं काम करी शकाय छे– एम
माननारने स्वपरना विभागनो अभाव तो छे ज, उपरांत तीव्र मिथ्यात्वनुं जोर छे.
शरीरनी क्रिया माराथी थई शके छे, शुभरागथी धर्म छे एम माननारने विषयोनो किंचित्
निरोध नथी. विषयोनी अभिलाषा जराय मटी