आगम ज्ञान, तत्त्वार्थश्रद्धान, संयमभाव एक साथे होवा छतां निर्विकल्प वीतरागी ज्ञान थया
संयतपणुं होवा छतां पण तेटलो मात्र शुभराग मोक्षना कार्य माटे अकिंचित्कर छे, मोक्षमार्ग नथी.
ज्यां अधूरी दशा=छठ्ठा गुणस्थानने योग्य वीतरागता मोक्षनुं साधन न कह्युं तो एकला शुभरागरूप
व्यवहार रत्नत्रय तो मोक्षनुं साधन (कारण) केम थाय? केमके ते बंधनुं कारण छे. शरीरनी क्रिया तो
मोक्षनुं कारण नथी पण शुभराग पण मोक्षनुं कारण नथी ज. नियमसार गाथा र नी टीकामां स्पष्ट
कह्युं छे के मोक्षमार्ग परम निरपेक्ष ज होय छे, एटले (स्वथी सापेक्षपणे पोताना शुद्धात्माना आश्रये
ज होय छे, अने परथी निरपेक्ष ज होय छे) एम समजवुं. वळी मोक्षमार्गप्रकाशकमा कह्युं छे के
“मोक्षमार्ग तो बे नथी, पण मोक्षमार्गनुं निरूपण बे प्रकारथी छे. ज्यां साचा मोक्षमार्गने मोक्षमार्ग
निरूपण कर्यो छे ते निश्चय मोक्षमार्ग छे तथा ज्यां जे मोक्षमार्ग नथी परंतु मोक्षमार्गनुं निमित्त छे वा
स्रहचारी छे, तेने उपचारथी मोक्षमार्ग कहीए” वास्तवमां तो एक वीतरागभाव ज मोक्षमार्ग ठर्यो;
अहीं तो सातमा गुणस्थानथी मोक्षमार्ग कह्यो छे अने छठ्ठा गुणस्थानना रागने पण मोाक्षमार्गमां
बाधक ज छे एम बतावे छे.
आमळानुं फळ स्पष्ट जणाय तेम) जाणे, श्रुतज्ञानी भूत, वर्तमान अने भावीने स्वउचित ज्ञानना
विकास द्वारा जाणे छे.
पोताना आत्माने जाणे छे, श्रद्धे छे अने संयमित राखे छे ते