Atmadharma magazine - Ank 234
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : २४८९ : १३ :
मोक्षमार्गमां, ६ – ७ गुणस्थाने झुलता
संतोनी टंकोत्किर्ण स्पष्ट वात.
श्री प्रवचनसार ता. १र – ९ – ६र, भादरवा सुद १३.


आगम ज्ञान, तत्त्वार्थश्रद्धान, संयमभाव एक साथे होवा छतां निर्विकल्प वीतरागी ज्ञान थया
विना, अल्प रागनो सद्भाव पण मोक्षमार्गमां बाधक ज छे– एम गाथा २३९ मां कहे छे.
सातमा गुणस्थानने योग्य निर्विकल्प श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र, लक्षण आत्मज्ञान होय अने छठ्ठा
गुणस्थाननो अंतर्मुहूर्त काळ ज्यां जे अंशे रागदशा छे, तेमां आगमनुं ज्ञान तत्त्वार्थश्रद्धान अने
संयतपणुं होवा छतां पण तेटलो मात्र शुभराग मोक्षना कार्य माटे अकिंचित्कर छे, मोक्षमार्ग नथी.
ज्यां अधूरी दशा=छठ्ठा गुणस्थानने योग्य वीतरागता मोक्षनुं साधन न कह्युं तो एकला शुभरागरूप
व्यवहार रत्नत्रय तो मोक्षनुं साधन (कारण) केम थाय? केमके ते बंधनुं कारण छे. शरीरनी क्रिया तो
मोक्षनुं कारण नथी पण शुभराग पण मोक्षनुं कारण नथी ज. नियमसार गाथा र नी टीकामां स्पष्ट
कह्युं छे के मोक्षमार्ग परम निरपेक्ष ज होय छे, एटले (स्वथी सापेक्षपणे पोताना शुद्धात्माना आश्रये
ज होय छे, अने परथी निरपेक्ष ज होय छे) एम समजवुं. वळी मोक्षमार्गप्रकाशकमा कह्युं छे के
“मोक्षमार्ग तो बे नथी, पण मोक्षमार्गनुं निरूपण बे प्रकारथी छे. ज्यां साचा मोक्षमार्गने मोक्षमार्ग
निरूपण कर्यो छे ते निश्चय मोक्षमार्ग छे तथा ज्यां जे मोक्षमार्ग नथी परंतु मोक्षमार्गनुं निमित्त छे वा
स्रहचारी छे, तेने उपचारथी मोक्षमार्ग कहीए” वास्तवमां तो एक वीतरागभाव ज मोक्षमार्ग ठर्यो;
अहीं तो सातमा गुणस्थानथी मोक्षमार्ग कह्यो छे अने छठ्ठा गुणस्थानना रागने पण मोाक्षमार्गमां
बाधक ज छे एम बतावे छे.
देहादिक प्रत्ये जेटली पण मूर्छा होय तो ते सर्व आगमने जाणतो होवा छतां सिद्धिने पामतो
नथी. अहीं सम्यग्ज्ञानीनी वात छे. गा. र३९. टीका सकळ आगमना सारने हस्तामलकवत् (हाथमां
आमळानुं फळ स्पष्ट जणाय तेम) जाणे, श्रुतज्ञानी भूत, वर्तमान अने भावीने स्वउचित ज्ञानना
विकास द्वारा जाणे छे.
आत्मानो स्वभाव तो त्रणे काळना स्वउचित पर्यायो सहित समस्त द्रव्योने जाणवानो छे तेथी
ते ज्ञानी साधुजीव भूत वर्तमान अने भावी पर्यायो सहित समस्त द्रव्य समूहने जाणनारा एवा
पोताना आत्माने जाणे छे, श्रद्धे छे अने संयमित राखे छे ते