Atmadharma magazine - Ank 234
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : २३४ : १प :
अहीं छठ्ठा गुणस्थानना रागने मोक्षमार्ग माटे अकिचित्कर कह्यो ते एम बतावे छे के कोई पण
प्रकारना रागथी कल्याण नथी, जुओ, जेने व्यवहार मोक्षमार्ग कहेवाय छे तेने ज बंधनुं कारण कहेल
छे. संतोए कांई गुप्त राख्युं नहीं, स्पष्ट वात करी छे.
छठ्ठा गुणस्थाननो शुभराग मोक्ष माटे अकिंचित्कर छे ज पण अंशे स्वसन्मुखता सहित
तत्त्वार्थश्रद्धान, आगमज्ञान अने छठ्ठा गुणस्थाननुं संयतपणुं पण मोक्ष माटे जराय कार्यकारी थतुं
नथी. नग्नदशा शरीरनी थई तेथी आत्माने लाभ छे एम नथी.
अहीं तो द्रष्टिमां–श्रद्धामां तो प्रथमथी ज सर्व रागादिने विरूद्ध जाणी तेनो त्याग थई गयो छे पण
चारित्रमां जरा जेटलो शुभराग जेने व्यवहार रत्नत्रय कहेल छे ते पण आस्रव तत्त्व छे माटे मोक्षमार्गमां
आडखीली समान बाधक ज छे एम प्रथमथी ज मोक्षमार्गनुं निरालंबी स्वरूप जाणवुं जोईए.
भूतार्थ स्वभावना आश्रये जेटलो मोक्षमार्ग वीतरागभाव उघड्यो तेमां कोई समये रागनी
अपेक्षा नथी. छठ्ठा गुणस्थाने भावलिंगी मुनिने र८ मूळगुण, छ आवश्यक आदि शुभ विकल्प आवे
छे अने तेटला अंशे चैतन्यनी जाग्रति रोकाय ज छे माटे ते अशुद्ध उपयोग छे, शुद्धोपयोग नथी. माटे
ज्ञानीना शुभ उपयोगने मोक्ष माटे अकिंचित्कर आचार्यदेव कहे छे.
शास्त्र रचुं, मुनिसंघने उपदेश दउं, भगवानना दर्शन, तीर्थयात्रा करुं ए आदि रागनी वृत्ति
आवे छे पण ते चैतन्यनी जाग्रतिने रोकनार छे, पुण्यबंधनुं कारण छे. कोई कहे मुनिदशामां शुभराग
रहे छे ते संवरनिर्जरानुं कारण छे तो एम नथी ज. कोई पण प्रकारनो राग हो, सर्वरागादि विभावथी
निरपेक्ष, अखंड स्वभावमां ढळवुं ते मोक्ष मार्ग छे. ते मोक्ष मार्गने वर्तमान वर्तती शुद्ध पर्यायनो
आश्रय नथी पण अखंडानंद शुद्धात्मद्रव्यनो ज आश्रय छे.
श्री नियमसारमां श्री पद्मप्रभमलधारिदेव कहे छे के मुनिओने हुं ज्ञानानंद छुं ईत्यादि भेद–
विकल्प ऊठे छे तेने मोक्ष थशे के नहीं कोण जाणे? अर्थात् विकल्पपरायणने मोक्ष नहीं थाय.
प्रश्न– ज्ञानीना भोगने (अशुभभावने) निर्जरानुं कारण कहेल छे तो ज्ञानीना शुभभावथी
निर्जरा (धर्म) केम नहीं?
उत्तर– नहीं, केम के ते आस्रवतत्त्व होवाथी बंधनुं कारण छे. ज्यां ज्ञानीने भोग निर्जरानो हेतु
कहेल छे त्यां तो निर्मळ श्रद्धानीय मुख्यताथी अने रागनुं स्वामीत्वा नथी ए अपेक्षाथी एम कह्युं छे.
बाकी लक्षण द्रष्टिथी तो ज्ञानीने पण कोईपण रागनुं बंधनुं ज कारण छे. मुनिदशाने योग्य शुभराग–
मंदकषाय, व्यवहार रत्नत्रय होय छे ते पण आस्रवतत्त्व होवाथी बंधनुं कारण छे निर्जरानुं कारण नथी
ए अनेकान्त सिद्धांत प्रथमथी ज मानवो जोईए. पछीय भूमिकानुसार शुभ रागरूप निमित्त–जे होय छे
तेनुं–ज्ञान कराववा उपचारथी तेने निर्जरानुं कारण कहेवुं ते व्यवहार छे. पण तत्त्वद्रष्टिथी तेम नथी.
श्री टोडरमलजीए आत्मज्ञान चोथा गुणस्थानथी लीधेल छे अने अहीं तो मोक्षमार्गनुं
निर्विकल्प आत्मज्ञान ७मा गुणस्थानथी कहेल छे. जुओ, आ शास्त्रना कर्त्ता आचार्यदेव पंचमकाळना
मुनि हता. जाणे छे के आ काळे साक्षात् मोक्षनी योग्यता नथी; छतां जेवी वस्तुस्थिति मोक्षमार्ग माटे
छे ते स्पष्ट बतावी दीधी छे. मुनिने वारंवार (हरेक अंतमुर्हूत बाद) छठुं गुणस्थान आवे छे पण
तेटला मात्र रागनो पण नकार वते छे. शास्त्रनो राग आवे छे छतां तेने पण तोडीने निर्विकल्प
शुद्धोपयोगमां स्थिर