चैत्र : २४८९ : १७ :
तेनो समय एक, द्रव्य एक, क्षेत्र एक अने भावमां भेद.
आ रीते भावरूप एक समयनी एक पर्यायमां चार भेद छे.
द्रव्य स्वभावना आश्रये जेटली निर्मळता थई ते संवर निर्जरा अने मोक्षमार्ग छे; अने ते ज
समये जेटला अंशे निमित्त, व्यवहारना आश्रयमां रोकावुं थयुं तेटलो रागभाव तेनुं नाम आस्रव अनेत्र
बंध बेउना स्वभावमां भेद छे, आकुळतारूप विभाव छे, निराकूळ शान्ति ते स्वभाव भाव छे, एम
लक्षणभेदथी स्वभावभेदने जाणीने, शुभरागने पण परपणे, विरोधी शक्तिपणे नक्की करीने, स्वाश्रयना
बळथी सर्व रागादिने कुशळ मल्लनी माफक अत्यंत मर्दन करी करीने एक साथे मारी नाखे छे.
अहो! आ तो वीतरागधर्मनी परायण छे. सत्य समजवा माटे सूक्ष्म परीक्षा जोईए. अनंत
शक्तिनो भंडार आत्मा छे, तेना आश्रये निर्मळ भेदज्ञाननुं बळ उत्पन्न थाय छे, तेमां अकषाकण अने
त्रिकाळी अकषाय स्वभावने भिन्न जाणी जाणीने, स्वाश्रित अखंड ज्ञानधाराथी, रागधारा (कर्मधारा)
ने परपणे नक्की करीने, नक्की तो प्रथमथी ज छे, पण अहीं विशेष ऊग्रपणे स्वसन्मुखताना बळथी
एकाग्र थतां रागांश नाश थाय छे– उत्पन्न थता नथी.
राग उत्पन्न थयो ने ते समये तेने मर्दन करी मारी नाखवो एम बनतुं नथी पण त्रिकाळी द्रव्य
स्वभावमां रागादि नथी, द्रव्य स्वभाव रागादिनो अकारक छे अने तेने आश्रये निर्मळ पर्याय प्रगट
थई ते पण रागादिनुं कारण नथी तथा द्रव्य स्वभावमां रागादिनो त्रणे काळ अभाव छे माटे रागनुं
ग्रहण त्याग तेमां नथी, पण वर्तमान पर्यायमां पोताना विपरीत पुरुषार्थथी रागादि ऊपजे छे, ते
चैतन्यनी जाग्रतिने रोकनार ज छे, आकूलतामय ज छे एम तेनो विरोध स्वभाव जाणीने, रागने सर्व
प्रकारे बाधक जाणीने ध्रुव ज्ञानानंद स्वभावमां उग्र एकाग्रताथी निश्चल थाय छे त्यां राग उत्पन्न थतो
नथी. तेथी कह्युं के उग्रपणे स्वभावभाव सन्मुख थतां अक्रमे रागने मारी नाखे छे एम व्यवहारथी
कहेवामां आवे छे. रागनो नाश करो अने ए उपदेश वचन छे. रागादिनो व्यय करी शकातो नथी;
असंख्य समयनो स्थूळ उपयोग छे, ते समय समयना रागने केम पकडी शके? वळी जे समये राग
आव्यो ते समये तेनो नाश केवी रीते थाय? हजी राग थयो नथी तेने टाळवो शुं? छे ते बीजे समये
टळी जशे ने पर्यायना लक्षे दरेक समये नवो नवो राग थया करशे ज माटे जेमां अंश पण राग नथी
एवा त्रिकाळी भूतार्थ स्वभाव सन्मुख थयो त्यां रागनी उत्पत्ति ज न थई– एनुं नाम रागनो त्याग
छे. प्रथम चोथा गुणस्थानमां भूतार्थ स्वभावनुं ग्रहण करनार निर्मळ श्रद्धानो उत्पाद थता
मिथ्यात्वादिनो व्यय थया करे छे; पछी विशेष स्वसन्मुखतारूप भेदज्ञानना बळथी क्रमे क्रमे अव्रत,
प्रमाद, कषाय, योग नामे विभावनी उत्पत्तिनो अभाव थाय छे. वस्तुस्वरूप आम ज छे. अहीं अक्रमे
नाश करे छे एम उग्र पुरुषार्थ बताववा कह्युं छे.
उत्तम क्षमादि दस लक्षण पर्व १र मासमां त्रण वार आवे छे, पण भादरवा मासमां तेने खास
धर्म पर्व तरीके उत्सव मनाववानो रीवाज छे.
अंतर चिदानंद स्वरूपमां लीन थनार मुनि रागादि पर द्रव्यथी शून्य एटले पर द्रव्यना
अंशमात्र आलंबनथी रहित एटले ७मा गुणस्थानमां रागादि व्यवहार भावोथी निरपेक्ष होवाथी,
विशुद्ध दर्शनज्ञान मात्र स्वभावथी परिपूर्णपणे रहेला निज आत्मतत्त्वमां नित्य निश्चल परिणति
उपजी होवाथी ते आत्मा साक्षात् संयत ज छे; अने तेने ज आगमज्ञान, तत्त्वार्थश्रान अने
संयतपणानी एकता साथे शुद्धोपयोगरूप आत्मज्ञाननुं युगपतपणुं सिद्ध थाय छे, अने ते मोक्षमार्गमां
शोभे छे.
गाथा–र४० नुं प्रवचन पूर्ण, ता. १र–९–६र.