Atmadharma magazine - Ank 234
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : २३४
अ. न. द. न. स. र. व. र
जेमांथी मंगळनो प्रवाह वहे छे

फागणवद १३ ना रोज पू. गुरुदेव थान शहेरमां पधार्या; त्यां उत्साहभर्या स्वागत बाद हजार
जेटला माणसोनी सभामां मांगलिक प्रवचनमां पू. गुरुदेवे कह्युं के: आत्मानो स्वभाव ज्ञान ने
आनंदथी भरेलो छे ते मंगळ छे; ने तेनुं भान करतां मिथ्यात्वरूप ममकार गळे अने आत्मानुं सुख
थाय ते मंगळ छे. जेने जगतना कोई पदार्थनी जरूर न पडे एवो आनंद आत्मामां भर्यो छे; तेमां
अंतर्मुख थतां सुख प्रगटे ने दुःख टळे एनुं नाम अपूर्व मंगळ छे. आवा आत्मस्वभावनी ओळखाण
करवी ते मंगळ छे. मंग एटले पवित्रता–सुख तेने लाति एटले के लावे ते मंगळ छे, एटले आत्मानी
श्रद्धा–ज्ञान–रमणता ते मंगळ छे.
आचार्यदेव कहे छे के अरे जीव! आवो तारो स्वभाव छे तेने जाण्या वगर तें संसारमां घणा
दुःखो सहन कर्या–
कहे महात्मा, सुण आत्मा,
कहुं वातमां वीतक खरी,
संसार सागर दुःखभर्यामां,
भाई, अज्ञानभावथी संसारमां भवो करी करीने तें जे दुःखो भोगव्या तेनी वितककथा लांबी
छे. माटे हवे तो आत्मानीय दरकार करीने सत्समागम कर.
जेम लींडीपीपरमां तीखास भरी छे तेम आत्मामां आनंद भर्यो छे. अंतर्मुख सत्समागमद्वारा
तेमां द्रष्टि करतां ते अनुभवमां आवे छे. आनंदनुं सरोवर तारामां ज भर्युं छे, तेमांथी आनंदनो
प्रवाह वहे छे. अहा, दरेक आत्मा आनंदसागर स्वभाव छे, – ते घणां सत्समागमे समजाय तेवो छे.
आनंदनुं सरोवर एवुं जे पोतानुं स्वरूप – तेने ओळखातां एवुं सुख प्रगटे के जे ईन्द्रना वैभवमां
पण नथी. सिद्ध भगवान जेवा आनंदनो अंश जेमां प्रगटे एवुं आ मांगळिक छे. मांगळिक बहारना
पदार्थोमां नथी, सिद्ध भगवान जेवा आनंदनो अंश जेमां प्रगटे एवुं आ मांगळिक छे. मांगळिक
बहारना पदार्थोमां नथी, मांगलिक तो आत्मानो एवो निर्दोष पवित्र भाव छे के जेनाथी सुख मळे ने
दुःख टळे. आनंदना सरोवर एवा आत्माना श्राद्ध–ज्ञाननी द्रढतारूप भाव ते आनंद मंगळरूप छे.