Atmadharma magazine - Ank 234
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : २३४
अद्भूत ज्ञानो खजानो खोलनार
ज्ञायकनी अनूभूति
श्री समयसारजी गाथा ६ठ्ठी उपर पूज्य गुरुदेवनुं मननीय प्रवचन ता. १०–११–६२
[अहो! सर्व अवस्थामां परथी निरपेक्ष, स्वथी सापेक्ष, अभेद ज्ञायक मात्र छुं, तेमां
द्रष्टि–अनुभव वडे परथी भिन्नपणे सेववामां आवतो शुद्ध कहीए तेनुं वर्णन चाले छे.]
ज्ञायकस्वभावी आत्मा छे तेने ज्ञेयकृत उपाधि नथी. अनेकने जाणे, एम कहेतां तेने परनी
उपाधिरूप अपेक्षा नथी. ज्ञानस्वभावथी ज पोतामां=ज्ञायकपणामां जणायो. परथी निरपेक्षपणे
एकलो पूर्णज्ञायक ज छुं, एम अनुभवमां आव्यो ते तो ते ज छे. एवा परम पारिणामिक भावरूप
ज्ञायकनो महिमा छे, तेनी मुख्यता छे तेथी तेना आश्रये ज धर्मनी शरूआत थाय छे. स्वसत्तावलंबी
श्रद्धा, ज्ञान अने लीनताने मोक्षमार्ग कहेवामां आवे छे. नीचे चारित्रमां कमजोरी जेटलो
परसत्तावलंबी अंश छे खरो पण ज्ञानी तेने मोक्षमार्ग माने नहीं. एकला शुभरागमां व्यवहारनो
आरोप आवतो ज नथी. एकला शास्त्र संबंधी ज्ञानने ज्ञान कहेतां ज नथी.
सर्व विशुद्ध ज्ञान अधिकार गा. ४०३ मां अंगपूर्व शास्त्रने जाणनारूं ज्ञान आत्मानुं गणी तेने
अभेद अपेक्षाए निश्चय साधित ज्ञान कह्युं ने ते ज ज्ञानने विकल्प अपेक्षाए व्यवहार कह्युं, अने ते ज
सम्यग्ज्ञान अंशे आत्मानी सन्मुख थयेलुं स्वाश्रित छे ते अभेद अपेक्षाए अहीं छठ्ठी गाथामां निश्चय
ज्ञान कह्युं छे कळश नां. १३ मां शुद्धनयने अभेद अपेक्षाए कह्युं के शुद्धनय (शुद्धनिश्चयनय) ना
विषयरूप आत्मानी अनुभूति छे ते ज ज्ञाननी अनुभूति छे, एम जाणीने तथा आत्माने आत्मामां
निश्चल स्थापीने सदा सर्व तरफ एक विज्ञानघन आत्मा स्वपणे छे, परपणे नथी एम देखवुं. वळी आ
कळशनी टीकामां श्री राजमल्लजीए कह्युं छे के १र अंगशास्त्रनुं ज्ञान कोई अपूर्व छे एम कोई माने तो
ते विकल्पात्मक परलक्षी ज्ञान छे, परसत्तावलंबी ज्ञान कांई मोक्षमार्ग नथी. भेदज्ञानद्वारा शुद्धात्मानो
अनुभव थतां सम्यग्द्रष्टिने १र अंग जाणवानी कोई अटक नथी.
छठ्ठी गाथामां शुद्धनयद्वारा अभेद आत्माने अनादि अनंत एकरूप ज्ञायक स्वभावपणे
अनुभवता, प्रमत्त अप्रमत्त आदि कोई भेदविकल्पनो अनुभव तेमां नथी. स्व. सन्मुख थयेलुं
सम्यग्ज्ञान व्यवहार नयथी अनेक ज्ञेयो ने जाणवारूपे परिणम्युं तोपण ज्ञेयोना कारणपणानी तेने