एकलो पूर्णज्ञायक ज छुं, एम अनुभवमां आव्यो ते तो ते ज छे. एवा परम पारिणामिक भावरूप
ज्ञायकनो महिमा छे, तेनी मुख्यता छे तेथी तेना आश्रये ज धर्मनी शरूआत थाय छे. स्वसत्तावलंबी
श्रद्धा, ज्ञान अने लीनताने मोक्षमार्ग कहेवामां आवे छे. नीचे चारित्रमां कमजोरी जेटलो
परसत्तावलंबी अंश छे खरो पण ज्ञानी तेने मोक्षमार्ग माने नहीं. एकला शुभरागमां व्यवहारनो
आरोप आवतो ज नथी. एकला शास्त्र संबंधी ज्ञानने ज्ञान कहेतां ज नथी.
सम्यग्ज्ञान अंशे आत्मानी सन्मुख थयेलुं स्वाश्रित छे ते अभेद अपेक्षाए अहीं छठ्ठी गाथामां निश्चय
ज्ञान कह्युं छे कळश नां. १३ मां शुद्धनयने अभेद अपेक्षाए कह्युं के शुद्धनय (शुद्धनिश्चयनय) ना
विषयरूप आत्मानी अनुभूति छे ते ज ज्ञाननी अनुभूति छे, एम जाणीने तथा आत्माने आत्मामां
निश्चल स्थापीने सदा सर्व तरफ एक विज्ञानघन आत्मा स्वपणे छे, परपणे नथी एम देखवुं. वळी आ
कळशनी टीकामां श्री राजमल्लजीए कह्युं छे के १र अंगशास्त्रनुं ज्ञान कोई अपूर्व छे एम कोई माने तो
ते विकल्पात्मक परलक्षी ज्ञान छे, परसत्तावलंबी ज्ञान कांई मोक्षमार्ग नथी. भेदज्ञानद्वारा शुद्धात्मानो
अनुभव थतां सम्यग्द्रष्टिने १र अंग जाणवानी कोई अटक नथी.
सम्यग्ज्ञान व्यवहार नयथी अनेक ज्ञेयो ने जाणवारूपे परिणम्युं तोपण ज्ञेयोना कारणपणानी तेने