Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : ७ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
गुरुदेवना मंगल जीवनमांथी आपणने मळतो
स. न. र स. न्द. श
* ले : ब्र. हरिलाल जैन * *
धर्मात्माओनुं जीवन मुमुक्षु जीवोने. आत्महितनी अनेकविध प्रेरणाओ आपे छे.
पुराणमां तीर्थंकरो, गणधरो, मुनिवरो, चक्रवर्तीओ वगेरेनी अनेक भवोनी
आत्मसाधनानुं जे वर्णन कर्युं छे ते वांचतां पण ज्ञान–वैराग्यनी केवी उर्मिओ स्फूरे छे? –
तो पछी एवा कोई धर्मात्मानुं जीवन साक्षात् नजरे नीहाळतां मुमुक्षुहृदयमां केवा केवा
आत्महितना तरंगो उल्लसे!! ते तो सहेजे समजी शकाय तेवुं छे.
ज्यारे – तीर्थंकरो के मुनिओनी तो शी वात, –धर्त्मात्माओनां दर्शननी पण अति–
अति विरलता थई गई छे एवा आ काळमां गुरुदेवना साक्षात् दर्शन, सत्समागम, अने
निरंतर उपदेशनी प्राप्ति ते आपणुं सौनुं घणुं मोटुं सद्भाग्य छे. जेमना मंगळजीवननो
विचार करतां, ते जीवन पण अनेकविध ‘सोनेरी सन्देश’ आपी रह्युं छे–एवा आ गुरुदेवनो
जन्मोत्सव ऊजवतां आपणा असंख्य प्रदेशो हर्ष अने भक्तिथी रोमांचित बने छे.
गुरुदेवनुं जीवन तेमना पोताने माटे तो मंगलरूप ने कल्याणरूप छे ज, ने
आपणाने पण तेमनुं जीवन अनेकविध मंगल प्रेरणाओ आपी रह्युं छे. अहा! जे जीवननी
प्रत्येक पळ आत्महितने माटे वीतती होय, जे जीवननी प्रत्येक क्षण संसारने छेदवा माटे
छीणीनुं कार्य करती होय, जे जीवननी प्रत्येक क्षण आत्माने मोक्षनी नजीक लई जती होय–ते
जीवन खरेखर धन्य छे.....गुरुदेवना एवा मंगल जीवनमांथी आपणने मळती प्रेरणओनुं
आ जन्मोत्सवना मंगल प्रसंगे परम उपकारबुद्धिथी थोडुंक आलेखन कर्युं छे.
(१) गुरुदेवनुं जीवन सौथी मोटी अने सौथी अगत्यनी प्रेरणा आपे छे–
आत्मार्थनी धूननी! जेम श्रीकृष्ण जन्म्या त्यारे ‘कंसने हणवा मारो अवतार छे’ एवो
गगनध्वनि थयो होवानुं कहेवाय छे तेम कहानगुरुना जीवनमां पहेलेथी ज एवी
गगनभेरी ऊठती के “आत्मार्थने साधवा मारो अवतार छे.” तेमना जीवनचरित्रमां
भाई श्री हिंमतलाल जे. शाह लेखे छे के “तेमने ऊंडे ऊंडे एम रह्या करतुं के हुं जेनी
शोधमां छुं ते आ नथी. कोई कोई वार आ दुःख तीव्रता धारण करतुं; अने एकवार तो,
माताथी विखूटा पडेला बाळकनी जेम, ते बाळमहात्मा सतना वियोगे खूब रडया हता.”
एटले आ उपरथी आपणे आत्मार्थनी धून जगाडीने गुरुदेवना जीवननी प्रेरणाने
झीछीए... –आ छे गुरुदेवना जीवनमांथी प्राप्त थतो पहेलो सुवर्णसन्देश.
(२) आत्मा शुं चीज छे. के सम्यग्दर्शन शुं चीज छे तेना शब्दो पण सांभळवा
नहोता मळता, अनेक प्रकारनी विपरीत मान्यताओना वादळांथी धर्म घेराई गयेलो हतो,