आत्मसाधनानुं जे वर्णन कर्युं छे ते वांचतां पण ज्ञान–वैराग्यनी केवी उर्मिओ स्फूरे छे? –
तो पछी एवा कोई धर्मात्मानुं जीवन साक्षात् नजरे नीहाळतां मुमुक्षुहृदयमां केवा केवा
आत्महितना तरंगो उल्लसे!! ते तो सहेजे समजी शकाय तेवुं छे.
निरंतर उपदेशनी प्राप्ति ते आपणुं सौनुं घणुं मोटुं सद्भाग्य छे. जेमना मंगळजीवननो
विचार करतां, ते जीवन पण अनेकविध ‘सोनेरी सन्देश’ आपी रह्युं छे–एवा आ गुरुदेवनो
जन्मोत्सव ऊजवतां आपणा असंख्य प्रदेशो हर्ष अने भक्तिथी रोमांचित बने छे.
प्रत्येक पळ आत्महितने माटे वीतती होय, जे जीवननी प्रत्येक क्षण संसारने छेदवा माटे
छीणीनुं कार्य करती होय, जे जीवननी प्रत्येक क्षण आत्माने मोक्षनी नजीक लई जती होय–ते
जीवन खरेखर धन्य छे.....गुरुदेवना एवा मंगल जीवनमांथी आपणने मळती प्रेरणओनुं
आ जन्मोत्सवना मंगल प्रसंगे परम उपकारबुद्धिथी थोडुंक आलेखन कर्युं छे.
गगनध्वनि थयो होवानुं कहेवाय छे तेम कहानगुरुना जीवनमां पहेलेथी ज एवी
गगनभेरी ऊठती के “आत्मार्थने साधवा मारो अवतार छे.” तेमना जीवनचरित्रमां
भाई श्री हिंमतलाल जे. शाह लेखे छे के “तेमने ऊंडे ऊंडे एम रह्या करतुं के हुं जेनी
शोधमां छुं ते आ नथी. कोई कोई वार आ दुःख तीव्रता धारण करतुं; अने एकवार तो,
माताथी विखूटा पडेला बाळकनी जेम, ते बाळमहात्मा सतना वियोगे खूब रडया हता.”