अध्यात्मना अनेक संस्कार स्फूर्या अने ते स्फुरणाना बळे सतनो निर्णय करीने मार्गनी
प्राप्ति करी, ते आपणने एवी स्फुरणा आपे छे के आपणा धार्मिक संस्कार एवा सुद्रढ होवा
जोईए के जे भवोभवमां साथे रहीने आपणुं कल्याण करे. (आ छे बीजो सोनेरी सन्देश.)
देजे! तुं जगत सामे जोईने बेसी रहीश ना. जगतनी प्रतिकूळताथी डरीने तुं तारा मार्गने
छोडीश नहि. जगत् गमे तेम बोले–तुं तारा आत्महितना पंथे निःशंकपणे चाल्यो जाजे.
(आ छे त्रीजो सोनेरी सन्देश.)
गुरुदेव पद्मपुराणमां अंजनासतीना जीवनप्रसंगो वांचता हता; तेमां ज्यारे अंजना
निर्जन वनमां विलाप करे छे ते प्रसंगनुं वर्णन आव्युं त्यारे गुरुदेवनी आंखोमांथी
अश्रुधान टपकवा लागी, ने तेमना हृदयमांथी उद्गार नीकळ्या के “अरे! धर्मात्मा उपरनुं
दुःख हुं जोई शकतो नथी.” वात्सल्यना आवा अनेक प्रसंगोथी भरेलुं गुरुदेवनुं जीवन
आपणने साधर्मीवात्सल्यनो महान उपयोगी सन्देश अने प्रेरणा आपे छे.
पोतानो मार्ग काढी ल्ये छे... गमे तेवी विकट परिस्थितिमां पण ते मूंझाईने बेसी नथी
रहेतो–पण पुरुषार्थ वडे आत्महितना मार्गमां निर्भयपणे झुकावे छे. आत्मानो खरो शोधक
गमे तेम करीने पोतानो मार्ग काढी ल्ये छे.
छे के–पोताना आत्महितना पंथे प्रयाण करतां तारा पर जगतना अणसमजु लोको गमे
तेवा आकरा आक्षेपो के निंदानी झडीओ वरसावे तोपण तुं डरीश मा... तारो मार्ग तुं
छोडीश मा... नीडरपणे तारा आत्महितना पंथे चाल्यो जजे. वीरनो मार्ग शूरवीरनो छे.
अने गंभीरता वडे ज ते प्रसंगने जीती लीधो छे. तेमनी आ शैलीथी घणा विरोधीओ पण
मुग्ध बनी गया छे. आ रीते गुरुदेवनुं जीवन आपणने गमे तेवी कटोकटीना प्रसंगे पण
सहनशीलता अने धैर्यना पाठ शीखवे छे. ए छे सातमो सोनेरी सन्देश.
तेमनुं जीवन