Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : ९ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
आपणा जेवा उपजीवीओने एवो सन्देश आपे छे के तारा आत्महितना मार्गनो एवो द्रढ
निर्णय करजे के देवथी पण न डगे ने देह छूटे तो य ते मार्गना संस्कार न छूटे.
(९) गुरुदेवनी आत्मधून एवी के तेने माटे तेमनुं जीवन सतत चितंनशील रह्युं
छे. वर्षो पहेलां वींछीयाना वड जेवा एकांतस्थानमां जईने दिवसनो घणोखरो भाग त्यां
स्वाध्याय–चिंतनमां वीतरागता; मात्र एकवखत आहार लेता. आत्मधून एवी के बीजा
कार्योमां वखत गूमाववो तेमने पालवतो नहीं. तेमनुं आखुं जीवन आपणने ढंढोळीने कहे
छे के तुं खरी आत्मधून जगाडने बीजा कार्यो मूक एककोर! निष्प्रयोजन कार्योमां वखत
वेडफवानुं आत्मार्थीने पालवे नहि.
(१०) आत्मकल्याण साधवानी ऊंडी अभिलाषानुं जोर तेमने वैराग्यमार्गे लई
गयुं... अने तेथी ज बाल वयथी ज तेओ ब्रह्मचारी रहीने संसारथी अभिप्त रह्या, एटलुं
ज नहि परंतु लाखो लोकोमां मोटी प्रतिष्ठा प्राप्त करवा छतां, अने शास्त्रोमांय पारंगत
थवा छतां, तेमां क््यांय तेओ संतृष्ट न थया ने आत्मसाधनाना मार्गे ज तेओ आगळ
वध्या... आवुं तेमनुं जीवन ब्रह्मचर्य अने वैराग्यमार्गनी प्रेरणा आपीने कहे छे के हे
भाई! जो तारे आत्महित साधवुं होय तो बीजे क््यांय तुं संतुष्ठ थईश मा.
(११) तेमनी गुरुभक्ति अने तत्त्वनिर्णयनी शक्ति आपणने पण गुरुभक्तिनो
अने तत्त्वनिर्णयनी शक्तिनो सन्देश आपी रही छे.
(१२) तेओश्रीना सुहस्ते थयेली २०० करतांय वधु जिनबिंबोनी प्रतिष्ठा, तथा
अतिभक्तिपूर्वक तेओश्रीए करेली सम्मेदशिखरजी, बाहुबली, कुंदकुंदधाम वगेरे तीर्थोनी
यात्रा ते आपणा जीवनमां जिनेन्द्रभक्तिनुं तथा साधकसंतो अने तेमनी पावन
साधनाभूमि (तीर्थभूमि) प्रत्येनी भक्तिनुं सींचन करीने आराधनानो उत्साह जगाडे छे.
(१३) सतत–अप्रमादपणे शास्त्रस्वाध्याय चिंतन–मननमां वर्ततो तेमनो उपयोग
अने मात्र आत्मानी आराधनाने अर्थे ज वीततुं तेमनुं जीवन आपणने अप्रमादपणे
आत्म–आराधना करवानो सोनेरी सन्देश आपी रह्युं छेत्रप.
गुरुदेवना जीवनमांथी मळती आवी आत्महितकारी प्रेरणाओ आपणे झीलीए...
ने ए रीते गुरुदेवना जन्मने आपणा महान कल्याण–मंगलनुं कारण बनावीए ए ज
गुरुदेवनो खरेखरो जन्मोत्सव छे. गुरुदेवना पावन जीवनने ध्येयरूपे राखीने तेओश्रीनी
नीकट छायामां वसतां जीवनना दुःखो दूर भागे छे ने आत्मार्थितानी सौरभथी जीवनपुष्प
खीली ऊठे छे. गुरुदेवना उपकारोना स्मरणमात्रथी आत्माना असंख्य प्रदेशोमां भक्तिना
सूर गूंजी ऊठे छे के–
हे नाथ! आ बालकशिरे तुज छत्रछाया अमर हो...
छूटे न कदी य सुयोग तुजनो जीवनना आधार छो...
तारी अमीद्रष्टि झीली तुज चरण भक्ति थकी भजी...
निजात्मनी प्राप्ति करुं संसारनी माया तजी...