Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १० :
मंगल जन्मोत्सव अंक
* मोक्षना साधनरूप क्रिया *
स्वभाव तरफ झूकीने, विकारना कर्तृत्वथी जुदुं परिणतुं ज्ञान ते मोक्षनुं कारण
छे. ए ज्ञान केवुं होय? ने एवा ज्ञानरूपे परिणमेला ज्ञानीनी दशा केवी होय? तथा
जेने एवुं ज्ञान नथी एवा अज्ञानीनी क्रिया केवी होय? –ते अहीं कर्ताकर्मअधिकारना
प्रवचनोमांथी प्रश्नोत्तररूपे सुगमशैलीथी रजु करवामां आव्युं छे.
* कर्त्ताकर्म अधिकारनी शरूआतमां कोने नमस्कार कर्या छे?
जेओ विभावनुं कर्ताकर्मपणुं मटाडीने, ज्ञानमय थया छे अने सिद्धपद पाम्या
*
कई रीते नमस्कार कर्या छे?
मदने दूर करीने, एटले के रागादि परभावो ते मारुं कार्य अने हुं तेनो कर्ता–
एवी मिथ्याबुद्धिरूप जे मद तेने दूर करीने सिद्धभगवंतोने नमस्कार कर्या छे. जेने
रागनी रुचि छे, रागमां कर्ताबुद्धि छे ते जीव ज्ञानमय सिद्धभगवंतोने खरा नमस्कार
करी शकतो नथी. ज्ञान–स्वभावनी रुचि करीने, ज्ञानभाव वडे ज सिद्धभगवंतोने
यथार्थ नमस्कार थाय छे.
* अमृतचंद्रआचार्यदेवे
कर्ताकर्मअधिकारनी शरूआतमां कोनो महिमा कर्यो छे?
सम्यग्ज्ञाननो महिमा कर्यो छे. ते सम्यग्ज्ञाने चैतन्यने अने क्रोधादिने भिन्न
*
अज्ञानीनी प्रवृत्ति केवी छे?
चैतन्य अने क्रोधादिमां एकत्वबुद्धिरूप जे अज्ञान, ते अज्ञानने लीधे चैतन्य
कर्ता अने क्रोधादि तेनुं कर्म–एवी विभाव कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति अज्ञानीने छे. अनादिथी
अज्ञानीनी आ प्रवृत्ति ते संसारनुं मूळ छे.
*
अज्ञानीनी ते प्रवृत्तिने कोण दूर करे छे?
सम्यग्ज्ञाननी ज्योति ते प्रवृत्तिने दूर करे छे; हुं तो चैतन्य छुं, क्रोधादि ते हुं
नथी, एम ज्यां सम्यग्ज्ञानज्योत जागी, त्यां ते ज्ञानज्योति क्रोधादि साथेनी कर्ताकर्मनी
प्रवृत्तिने सर्व तरफथी शमावी दे छे; विकारना एक अंशने पण ते चैतन्यमां प्रवेशवा
देती नथी. ते ज्ञानज्योति कोईने आधीन नथी, रागने आधीन नथी; रागादिनी
आकूळता तेनामां नथी एटले ते