Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १२ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
* ज्ञानक्रियाने शा माटे निषेधवामां नथी आवी? अने करोतिक्रियाने शा माटे
निषेधवामां आवी छे?
ज्ञानक्रिया आत्माना स्वभावभूत होवाथी ते निषेधवामां आवी नथी, अने
करोतिक्रिया परभावभूत होवाथी निषेधवामां आवी छे. ज्ञानक्रिया ते मोक्षनुं कारण छे,
ने क्रोधादिक्रिया ते बंधनुं कारण छे. ज्ञानक्रिया तो संवरनिर्जरारूप छे, ने क्रोधादिक्रिया तो
आस्रवरूप छे. ज्ञानक्रिया तो आत्मामां एकमेकरूप छे, ने क्रोधादिक्रिया आत्माथी
भिन्नरूप छे; माटे ज्ञानक्रियानो तो मोक्षमार्गमां स्वीकार छे, पण अज्ञानरूप एवी
क्रोधादिक्रियाने मोक्षमार्गमांथी निषेधवामां आवी छे. जे जीव क्रोधादिक्रियामां वर्ते छे तेने
मोक्षमार्ग होतो नथी.
* क्रोधादि आस्रवो साथे आत्माने केवो संबंध छे?
क्रोधादि आस्रवो चैतन्यस्वभावथी अत्यंत जुदा छे, तेनी साथे आत्माने
एकतानो संबंध नथी पण संयोगरूप संबंध छे.
* अज्ञानी केवी क्रिया करे छे?
आस्रवो परभावभूत छे, ने आत्माना स्वभावथी जुदा छे तोपण अज्ञानी तेने
आत्मा साथे एकमेक मानतो थको, निःशंकपणे क्रोधादि परभावोमां पोतापणे वर्ते छे;
आ रीते क्रोधादिमां वर्ततो ते क्रोधादि क्रियाने करे छे. अज्ञानीनी आ अज्ञानमय क्रिया
र्कबंधनुं अने संसारनुं कारण छे.
* जगतमां क्रियाना सामान्यपणे केटला प्रकार छे?
जगतमां सामान्यपणे त्रण प्रकारनी क्रिया छे–
(१) स्वाभावक्रिया: ज्ञानादिभावोनी क्रिया ते स्वभावक्रिया छे.
(२) विभावक्रिया: क्रोधादिभावोनी क्रिया ते विभावक्रिया छे.
(३) जडनी क्रिया: देहादि क्रिया ते जडनी क्रिया छे.
* कई क्रियानो कर्ता कोण छे?
१. ज्ञानी ज्ञानादि स्वभावक्रियानो कर्ता छे;
२. अज्ञानी क्रोधादि विभावक्रियानो कर्ता छे;