Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १३ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
३. जडनी क्रियानो कर्ता जड छे, कोई जीव तेनो कर्ता नथी. ज्ञानी के अज्ञानी
*
ए त्रण प्रकारनी क्रियामांथी कई क्रिया शेनुं कारण छे?
१. ज्ञानादि स्वभावक्रिया ते मोक्षनुं कारण छे.
२. क्रोधादि परभावक्रिया ते संसारनुं कारण छे.
३. जडनी क्रिया जीवथी जुदी छे, ते बंधनुं के मोक्षनुं कारण नथी. जीवने बंध–
*
ज्ञानक्रिया केवी छे?
ज्ञानक्रिया आत्माना स्वभावभूत छे, स्वभावना आश्रये तेनी उत्पत्ति छे, अने
स्वभाव साथे तेने तादात्म्य (एकता) छे, तेथी ते क्रिया आत्माथी जुदी पडी शकती
नथी, तेनो निषेध थई शकतो नथी.
*
विभावक्रिया केवी छे?
विभावक्रिया परभावरूप छे, ते स्वभावना आश्रये उत्पन्न थती नथी पण
कर्मना आश्रये ते उत्पन्न थाय छे, तेने स्वभाव साथे एकता नथी पण जुदाई छे, तेथी
ते क्रिया निषेधवामां आवी छे, अर्थात् भेदज्ञान करीने स्वभावनो आश्रय करतां ते
विभावक्रिया छूटी जाय छे, एटले तेनो निषेध थई जाय छे.
*
भेदज्ञानी क््यां प्रवर्ते छे? ने अज्ञानी क््यां प्रवर्ते छे?
भेदज्ञानी तो, आत्मानो चैतन्यस्वभाव, अने रागादि परभाव ए बंनेने जुदां
जुदां लक्षणवडे भिन्न जाणतो थको चैतन्यस्वभावमां ज पोतापणे निःशंक प्रवर्ते छे, ने
रागादिभावोने पोताथी अत्यंत जुदा जाणतो थको तेमां पोतापणे–एकतापणे जरापण
वर्ततो नथी. अने अज्ञानी जीव चैतन्यभाव अने रागादिना भिन्न लक्षणने नहि
जाणतो थको, बंनेने एकमेक मानतो थको, ज्ञाननी जेम रागादिमां ज पोतापणे निःशंक
प्रवर्ते छे, पण रागथी ज्ञानने जुदुं करीने चैतन्यस्वभावमां एकता करतो नथी. आ
रीते ज्ञानी ज्ञानस्वभावमां ज एकता करीने ज्ञानक्रियारूप प्रवर्ते छे, अने अज्ञानी
क्रोधादिमां ज एकतापणे वर्ततो थको अज्ञानमय एवी क्रोधादिक्रियाने करे छे.
*
आमां निश्चय व्यवहार कई रीते छे?
ज्ञानीने स्वभावना आश्रये थती जे शुद्धज्ञानक्रिया छे ने ते निश्चय छे, ते
आत्माना स्वाश्रये होवाथी शुद्धनिश्चय छे; अने जे रागादि अशुद्धक्रिया छे ते
अशुद्धउपादान छे ने ते अशुद्धनिश्चय छे; शुद्धनिश्चयनी द्रष्टिमां तो अशुद्धनिश्चय ते पण
व्यवहारमां ज जाय