पर ज छे. आ रीते एक तरफ शुद्धउपादान ते स्व, अने बीजी तरफ अशुद्धता तथा तेना
निमित्तो–ते बधुंय पर–एम स्पष्ट भेदज्ञान कराव्युं छे.
स्वभावमां अभावरूप एवी जे विकारक्रिया, तेनो आत्मामां निषेध होवा छतां
शांतिनो समुद्र चैतन्यस्वरूप मारो आत्मा छे, ने क्रोधादि परभावो मने अशांति
क्रोधादि व्यापारमां लीन थईने परिणमतो अज्ञानी जीव, आत्मानी जे
ज्ञाताद्रष्टाभावरूपे परिणमतो नथी, पण अज्ञानरूपे परिणमे छे.