Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १४ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
छे, अने ते व्यवहार पराश्रित होवाथी (कर्मना आश्रये होवाथी) ते पण कर्मनी जेम
पर ज छे. आ रीते एक तरफ शुद्धउपादान ते स्व, अने बीजी तरफ अशुद्धता तथा तेना
निमित्तो–ते बधुंय पर–एम स्पष्ट भेदज्ञान कराव्युं छे.
शुद्ध द्रष्टिथी जोतां आत्मा विकारनुं कारण नथी, तेमज विकारवडे तेनुं
*
अज्ञानीने शेनो अभ्यास छे?
स्वभावमां अभावरूप एवी जे विकारक्रिया, तेनो आत्मामां निषेध होवा छतां
*
धर्मात्माने केवो अभ्यास होय छे?
शांतिनो समुद्र चैतन्यस्वरूप मारो आत्मा छे, ने क्रोधादि परभावो मने अशांति
*
अज्ञानी शेनो त्याग करे छे?
क्रोधादि व्यापारमां लीन थईने परिणमतो अज्ञानी जीव, आत्मानी जे
ज्ञानभवन मात्र सहज उदासीन अवस्था तेनो त्याग करे छे, एटले के अंतर्मुख थईने
ज्ञाताद्रष्टाभावरूपे परिणमतो नथी, पण अज्ञानरूपे परिणमे छे.