Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १प :
मंगल जन्मोत्सव अंक
* ज्ञानी शेनो त्याग करे छे?
भेदज्ञानना बळे क्रोधादिथी तद्न भिन्न परिणमतो थको, ज्ञानस्वभावनी
सन्मुखपणे ज्ञानमात्र क्रियापणे परिणमतो थको, सहज उदासीन अवस्थाने ग्रहण करे
छे, ने परभावभूत विकारीक्रियानो त्याग करे छे एटले के ते रूपे परिणमतो नथी.
*
अज्ञानीने क्रोधादि केवा भासे छे?
क्रोधादिथी भिन्न सहजज्ञाननी जेने खबर नथी एवा अज्ञानीने ते क्रोधादिभावो
पोताना अंतरंगमां पोताना कार्य तरीके प्रतिभासे छे; क्रोधादिभावो छे तो चैतन्यथी
बहिरंग, पण अज्ञानीने ते अंतरंगपणे भासे छे, जाणे के आ क्रोधादि ते मारा चैतन्यनुं
ज कार्य होय, चैतन्यवडे ज ते करातां होय एम अज्ञानने लीधे प्रतिभासे छे. आ रीते
ते अज्ञानी क्रोधादिभावोनो कर्ता थईने तेने पोतानुुं कर्म बनावे छे. आटली अज्ञानीना
कर्ताकर्मपणानी हद छे, पण तेथी बहार शरीरादि परद्रव्य साथे तो तेने पण जराय
कर्ताकर्मपणुं नथी.
*
ज्ञानीने क्रोधादि भावो केवा भासे छे?
क्रोधादिथी भिन्न पोताना चैतन्यस्वभावने जाणनार ज्ञानीधर्मात्मा क्रोधादिने
पोताना स्वभावथी बाह्य देखे छे, क्रोधादिभावो तेने स्वभावरूप भासता नथी पण
संयोगरूप भासे छे. विकारनो अंश पण तेने पोताना स्वभावपणे भासतो नथी. ते
जाणे छे के–
“मारो सुशाश्वत एक दर्शन–ज्ञानलक्षण जीव छे,
बाकी बधा संयोगलक्षण भाव मुजथी बाह्य छे.”
* आत्माने अने ज्ञानने केवो संबंध छे?
आत्माने अने ज्ञानने नित्य तादात्म्य संबंध छे, एटले के बंनेने एकता छे.
*
आत्माने अने रागादिभावोने केवो संबंध छे?
पर्याय अपेक्षाए जोतां ते रागादि भावो आत्मानी पर्यायमां थता होवाथी तेने
पर्याय साथे क्षणिक तादात्म्य संबंध छे, पण आत्माना शुद्धस्वभावनी द्रष्टिथी जोतां
तेमां रागनो अभाव ज छे, क्षणिक तादात्म्यसंबंध पण नथी, ते तो मात्र
संयोगसंबंधरूप छे. चैतन्य स्वभावमां जेम देहादिसंयोगनो अभाव छे तेम रागादिनो
पण अभाव छे, भेदज्ञानी जीव आत्माना स्वभावने रागथी जुदो ज अनुभवे छे.
*
जीवने कर्म साथे केवो संबंध छे?
जीवनो शुद्ध चैतन्यस्वभाव तो कर्मबंधनुं निमित्त पण नथी, एटले शुद्धद्रष्टिथी तो