स्वभावमां एकतारूप प्रवृत्ति प्रगट करी छे एवा ज्ञानीना ज्ञानपरिणाम पण कर्मबंधनुं
निमित्त थता नथी, तेने कर्म साथेनो निमित्त–नैमित्तिकसंबंध तूटी गयो छे. जे अज्ञानी
छे, जेने भिन्न चैतन्यनुं भान नथी, रागमां एकतापणे जे वर्ते छे एवा जीवना
अज्ञानमय रागादि परिणाम ते कर्मबंधनुं निमित्त छे; ए रीते अज्ञानी जीवना
अज्ञानमय परिणामने ज कर्मबंध साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे; परंतु तेने य
जडकर्म साथे कर्ताकर्मपणुं तो छे ज नहीं.
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ज्यां सुधी आत्मानुं अने विकारनुं भेदज्ञान नथी त्यां सुधी ज अज्ञानीने विकार
बंधन अने संसार थाय छे.
शिष्य पूछशे, ने आचार्यदेव तेनो उत्तर आपशे.
(२) मोक्षनुं कारण शुं?
(३) मोक्षमार्ग केवो छे?
(४) कर्म केवुं छे?
(प) मोक्षमार्गमां शेनो निषेध छे?
(६) शुभरागना आश्रये मोक्षमार्ग केम न थाय?
(७) मिथ्याद्रष्टि जीव केवो छे?
(८) साचुं जीवन कोण जीवे छे?
(९) मोक्षार्थीए शुं करवा योग्य छे?
(१०) ज्ञानमय परिणमननी शरूआत क््यारे थाय?
(समयसारना पुण्य–पाप अधिकारना प्रवचनो