Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १६ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
जीवने कर्म साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध पण नथी, अने भेदज्ञान करीने जेणे चैतन्य
स्वभावमां एकतारूप प्रवृत्ति प्रगट करी छे एवा ज्ञानीना ज्ञानपरिणाम पण कर्मबंधनुं
निमित्त थता नथी, तेने कर्म साथेनो निमित्त–नैमित्तिकसंबंध तूटी गयो छे. जे अज्ञानी
छे, जेने भिन्न चैतन्यनुं भान नथी, रागमां एकतापणे जे वर्ते छे एवा जीवना
अज्ञानमय रागादि परिणाम ते कर्मबंधनुं निमित्त छे; ए रीते अज्ञानी जीवना
अज्ञानमय परिणामने ज कर्मबंध साथे निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे; परंतु तेने य
जडकर्म साथे कर्ताकर्मपणुं तो छे ज नहीं.
*
विकार साथे कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति क््यां सुधी छे?
ज्यां सुधी आत्मानुं अने विकारनुं भेदज्ञान नथी त्यां सुधी ज अज्ञानीने विकार
साथे कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति छे. अने ज्यां सुधी एवी कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति छे त्यां सुधी ज
बंधन अने संसार थाय छे.
हवे, आवी अज्ञानप्रवृत्ति क््यारे छूटे? एम जिज्ञासु
शिष्य पूछशे, ने आचार्यदेव तेनो उत्तर आपशे.
दस प्रश्न
(१) पंडित कोण?
(२) मोक्षनुं कारण शुं?
(३) मोक्षमार्ग केवो छे?
(४) कर्म केवुं छे?
(प) मोक्षमार्गमां शेनो निषेध छे?
(६) शुभरागना आश्रये मोक्षमार्ग केम न थाय?
(७) मिथ्याद्रष्टि जीव केवो छे?
(८) साचुं जीवन कोण जीवे छे?
(९) मोक्षार्थीए शुं करवा योग्य छे?
(१०) ज्ञानमय परिणमननी शरूआत क््यारे थाय?
(समयसारना पुण्य–पाप अधिकारना प्रवचनो
उपरथी दस प्रश्नो अहीं आप्या छे... तेना उत्तर आ
अंकमां ज अन्यत्र आपेला छे... ते शोधी लेशोजी.)