थाय? अरे, चैतन्यने दुःख देनारी आ अज्ञानप्रवृत्ति क््यारे छूटे? प्रभो! अज्ञान
ज आ संसारनुं मूळ छे–एम आप कह्युं, तो हवे ते अज्ञाननो अभाव केम थाय?
शिष्यने अज्ञानथी शीघ्र छूटवानी झंखना जागी छे तेथी धगशपूर्वक श्रीगुरुने
आवो प्रश्न पूछे छे. अनादिकाळ तो आवा अज्ञानमां वीत्यो पण हवे जे शिष्य
जाग्यो छे ते लांबो काळ अवा अज्ञानमां रहेवानो नथी, तेने धर्मलब्धिनो काळ
नजीक आव्यो छे; ते शिष्य पूछे छे के प्रभो! आत्माने बंधननुं कारण एवुं आ
अज्ञान क््यारे ढळे? शीघ्र अज्ञान टळे एवो उपाय जाणीने शिष्य अज्ञानने
टाळवा तत्पर थयो छे.
जाणे विशेषांतर, तदा बंधन नहि तेने थतुं. ७१.
भेदज्ञान करे छे त्यारे तेने अज्ञाननो नाश थाय छे; अने अज्ञानथी उत्पन्न
थयेली एवी विकार साथेनी कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति पण छूटी जाय छे, ते छूटी जतां
तेने बंधन पण अटकी जाय छे.