Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म : १८ :
मंगल जन्मोत्सव अंक
आ जगतमां वस्तुओ केवी छे?
आ जगतमां जे कोई वस्तु छे ते पोताना स्वभावमात्र ज छे. आत्मा वस्तु छे
ते पोताना ज्ञानस्वभावमात्र ज छे. निश्चयथी जे ज्ञाननुं परिणमवुं ते आत्मा छे.
ज्ञानना परिणमनमां श्रद्धा–ज्ञान–आनंद वगेरे बधा भावो समाय छे, पण तेमां
क्रोधादि समाता नथी. अथवा, निश्चयरत्नत्रयरूप जे भाव ते ज्ञाननुं परिणमन छे, ते
आत्मानो स्वभाव छे, अने व्यवहाररत्नत्रयरूप शुभभाव ते खरेखर ज्ञाननुं
परिणमन नथी, ते आत्मानो स्वभाव नथी. जुओ, आ भेदज्ञान!! आवुं भेदज्ञान ते
ज अज्ञानना नाशनो उपाय छे. ज्यारे आवुं भेदज्ञान करे त्यारे ज अज्ञाननो नाश
थाय छे. आवा भेदज्ञान वगर क््यारेय अज्ञान छूटे नहि.
ज्ञानने अने क्रोधने कई रीते जुदापणुं छे?
ज्ञानमां क्रोध नथी ने क्रोधमां ज्ञान नथी. जीव ज्यारे स्वभावसन्मुख थईने
ज्ञानपणे परिणमे छे त्यारे ते ज्ञानना परिणमनमां ज्ञान थतुं मालुम पडे छे, पण ते
ज्ञानपरिणमनमां क्रोधादि थता मालुम पडता नथी; आ रीते ज्ञानमां क्रोध नथी. अने
ज्यारे क्रोधादिमां एकपणे परिणमे छे त्यारे ते जीवने ते क्रोधादिना परिणमनमां क्रोधादि
परभावो ज भासे छे, पण ते क्रोधादिमां ज्ञान भासतुं नथी, केमके क्रोधादिमां ज्ञान
नथी. आ रीते ज्ञान अने क्रोधादिने अत्यंत भिन्नता छे; एटले ज्ञानस्वभावी आत्माने
क्रोधादि साथे एकता नथी पण भिन्नता छे.
जुओ, आ अंदरना वेदननी वात! ज्यां स्वभावसन्मुख थईने ज्ञानपणे
परिणम्यो त्यां क्रोधादिथी जुदापणे परिणमन थयुं. त्यां क्रोधथी भिन्न ज्ञाननुं वेदन थयुं.
ते वेदनमां क्रोधादिनी उत्पत्ति थती नथी. ज्ञाननी अने क्रोधनी भिन्नता ज्ञानीने वेदनमां
स्पष्ट भासे छे. ज्यां परिणति स्वभाव तरफ झूकी त्यां क्रोधथी छूटी. परिणति
ज्ञानस्वभाव तरफ झूके अने तेमां रागनी रुचि पण रहे एम कदी बनतुं नथी. ज्यां
ज्ञाननी रुचि छे त्यां रागनी रुचि नथी; अने ज्यां समजावीने आचार्यदेव केवुं स्पष्ट
भेदज्ञान कराव्युं छे? आवुं भेदज्ञान करतांवेंत ज अज्ञान नाश पामे छे. –आ अपूर्व
धर्म छे.