Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्मः२७:
मंगल जन्मोत्सव अंक
गुरुदेवना मंगळजन्मोत्सव प्रसंगे शेठ श्री प्रेमचंदभाईए
पोतानी भावभीनी उर्मि व्यक्त करी छे ते अहीं आपवामां आवी छे.
अहो! अहो! श्री सद्गुरु, करुणासिंधु अपार,
आ पामर पर प्रभु कर्यो, अहो! अहो! उपकार.
आजे महान मांगळिक
दिवस छे, परमकृपाळु
गुरुदेवश्रीनी जन्मजयंतिनो
आजनो दिवस अपूर्व आनंद
अने उल्लासनो छे. आपणा–
सर्वे मुमुक्षु आत्मार्थी जीवोना
उद्धारनो, एटले के धार्मिक
जीवनना जन्मनो आजनो
अवसर छे. जैनधर्मने भूलीने
अनादिकाळथी संसारमां
रखडता जीवोने, जैनधर्मना
वास्तविक स्वरूपनुं भान
करावनार परमपूज्य
गुरुदेवश्रीनो अनंत उपकार
छे. अज्ञानी जीवो जडनी
क्रियामां अने पुण्यमां
धर्ममानी अने मनावी रह्यां
छे. त्यारे चिदानंदमूर्ति आत्मा
जडथी ने विकारथी भिन्न छे–तेना स्वानुभवथी ज सम्यक्त्व अने धर्म थाय छे, –एवी सम्यग्दर्शननी
अपूर्व वात गुरुदेव संभळावी–समजावीने आपणुं अपूर्व कल्याण करी रह्या छे. वर्तमान दुःषमकाळमां
आवा अपूर्व ज्ञानीओना समागम विना अने तेमना वचनामृतोनुं अपूर्व श्रवण मळ्‌या विना आपणुं
शुं शात! ते कल्पनामां आवी शकतुं नथी. तेओए आपणने भयंकर भावमरणोथी उगारीने अपूर्व
आत्मजीवन अर्प्युं छे. ज्यारे तीर्थंकरो–केवळीओ के गणधरोनो आपणने विरह वर्ते छे एवा आ काळे
साक्षात् स्वानुभूतिनो निःशंक मार्ग प्रकाशीने गुरुदेवे ते विरह भूलावी दीधो छे. तेमना उपकारनो
बदलो कोई रीते वळी शके तेम नथी. आवा गुरुदेवनो साथ आपणने सदाय रह्या करे, आपणे मोक्ष
पामीए त्यांसुधी तेओ आपणुं कांडुं छोडे नहि ने निरंतर तेमनी मीठी छायामां रहीने आपणुं
मंगलकार्य पूरुं करीए–एवी भावनापूर्वक अत्यंत भक्तिथी तेओश्रीना चरणोने अभिनंदुं छुं.