Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 38 of 53

background image
आत्मधर्मः२९:
मंगल जन्मोत्सव अंक
“चैतन्यप्रभुने जोवा माटे रागथी दूर जा... ने स्वभावनी समीप था”

जो के आ चैतन्यस्वरूप आत्मा मोटो महिमावंत परमेश्वर छे, पण अज्ञानी जीव रागनी समीप
अने चैतन्यस्वभावथी दूर वर्ते छे, एटले तेने रागनी ज महत्ता–मोटाई भासे छे, पण चैतन्यप्रभुनी
मोटाई–महत्ता तेने भासती नथी; रागनी रुचि आडे ते चैतन्यनी प्रभुताने देखतो नथी. पण–










ज्ञानी तो भेदज्ञानचक्षु वडे रागथी जुदो पडी–विभावोथी दूर जई, चैतन्यस्वभावनी समीप
जईने आत्माने जुए छे, एटले चैतन्यनी नीकटताथी तेने आत्मा परम अचिंत्य प्रभुता सहित मोटो
महिमावंत देखाय छे. आ रीते स्वभावनी समीपता ते चैतन्यप्रभुना दर्शननी रीत छे.