जो के आ चैतन्यस्वरूप आत्मा मोटो महिमावंत परमेश्वर छे, पण अज्ञानी जीव रागनी समीप
ज्ञानी तो भेदज्ञानचक्षु वडे रागथी जुदो पडी–विभावोथी दूर जई, चैतन्यस्वभावनी समीप
Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).
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