Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 39 of 53

background image
आत्मधर्मः३०:
मंगल जन्मोत्सव अंक
फत्तेपुरमां जन्मोत्सव
प्रसंगे गुजरातनी जनता
तरफथी घणो हर्ष व्यक्त करतां
उत्साही कार्यकर भाईश्री
बाबुभाईए उल्लासपूर्वक कह्युं
हतुं के–
धन्य छे... धन्य छे...
आजनो मंगलदिन! धन्य छे
अमारा सौभाग्य के आजे
अमारा आंगणे गुरुदेवनो
जन्मोत्सव उजवाई रह्यो छे.
आजे अमारे रांकने त्यां रत्न
सांपड्युं छे. तीर्थंकर
भगवाननी दिव्यध्वनिनो
सन्देश देनार महापुरुष आजे
अमारा आंगणे पधार्या छे,
तेथी जाणे के भगवाननुं
समवसरण ज अमारे त्यां
आव्युं होय– एवो अमने
आनंद थाय छे.
आ वात कोना अंतरमां ऊतरे?
आत्माना अंर्तस्वभावमां ढळवानी आ वात कोना अंतरमां
ऊतरे? – के जेना अंतरमां धर्मनी खरी जिज्ञासा जागी होय ते जिज्ञासु
जीव पोताना हितने माटे आ वात अंतरमां ऊतारीने ज्ञानस्वभावी
आत्मानो निर्णय करे छे. पर तरफनो उत्साह जेने ओसरी गयो छे, राग
तरफनो उत्साह पण ओसरी गयो छे, ने ज्ञानस्वभाव तरफना उत्साहनी
जेने भरती आवे छे–एवा जीवना अंतरमां आ वात ऊतरी जाय छे–
एटले के तेने शुद्धात्मानी अनुभूति थाय छे.
(राजकोट–प्रवचनमांथी)