आत्मधर्मः३२:
मंगल जन्मोत्सव अंक
अक्षय त्रीजनो ईतिहास
वैशाख सुद त्रीजनो दिवस छे... वैशाख सुद बीजनी राते श्रेयांसकुमारने स्वप्न आव्युं छे के
अहा! मारा आंगणे कल्पवृक्ष आव्युं छे! देवो मारा आंगणे वाजां वगाडे छे, पुष्पवृष्टि थाय छे........
ईत्यादि महा मंगल स्वप्नथी श्रेयांसकुमार बहु प्रसन्न थाय छे...
वैशाख मास एटले शेरडीनी मोसम! ... शेरडीना निर्दोष रसना घडा भरी भरीने प्रजाजनो
श्रेयांसकुमारने त्यां मुकी जाय छे...
भोजन समये एक अबधूत योगी चैतन्यना प्रतपनमां मस्त चाल्या आवे छे... ए छे
भगवान आदिनाथ मुनिराज! तेमने जोतां ज श्रेयांसकुमारने तेमनी साथेना भवोभवना संस्कार
ताजा थाय छे, तेमनी साथे मुनिवरोने दीधेला आहारदाननुं स्मरण थाय छे... ने परम भक्तिपूर्वक
वर्ष उपरांतना उपवासी योगीराजने पोताना आंगणे विधिपूर्वक पडगाहन करीने, नवधा भक्तिथी
शेरडीना रसनुं आहारदान करे छे... भरतक्षेत्रमां आ चोवीसीमां मुनिराजने आहारदान देवानो ए
प्रसंग असंख्य वर्षोना अंतरे आ पहेलवहेलो बन्यो. भरतचक्रवर्ती जेवोए भक्तिथी तेनी अनुमोदना
करी... ने पछी श्रेयांसकुमार दीक्षित थईने भगवान आदिनाथना गणधर बन्या... ने छेवटे अक्षयपद
पाम्या.
––आ छे अक्षय त्रीजनो ट्ंको ईतिहास.
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एक वखत एक भाई अने बहेन ते नगरीमां जई पहोंच्या. भाईए नगरीना पहेला त्रण
अक्षर लईने बेनने आप्या... तेथी बहेन खुश थई. अने बहेने बाकीना बे अक्षर बनावीने भाईना
मोढामां मूकया एटले भाई पण खुश थयो.
पछी भाई–बहेने ज्यारे जाण्युं के आ नगरीमां तो एक भगवान जन्म्या छे, त्यारे तेओ खुब
खुशी थईने ते भगवाननी भक्ति करवा लाग्या... तो ए नगरी कई हशे? (न मळे तो, महावीर
भगवानकी... जे बोलशो एटले ए नगरी तमने झट मळी जशे.)
धारो के जीव ने अजीव वच्चे झगडो थयो; जीव कहे छे के ‘अस्तित्वगुण मारो छे’ ने अजीव
कहे छे के ‘मारो छे.’ हवे तमने न्यायाधीश नीमवामां आव्या छे, तो तमे शुं चुकादो आपशो?