Atmadharma magazine - Ank 235
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्मः३९:
मंगल जन्मोत्सव अंक

जेमणे ज्ञानानंदस्वरूप एकत्व–विभक्त भगवान आत्मानी अनुभूतिमूलक भेदज्ञानना अमोघ
मंत्र वडे अनेक मुमुक्षु जीवोनो उद्धार कर्यो छे ते परम कुपाळु परम पूज्य गुरुदेवनो जन्मोत्सव समस्त
भक्तजनोने खरेखर अति आनंदोल्लासनो प्रसंग छे. वि. सं. १९४६, वैशाख सुद बिज, रविवारना
मंगल प्रभाते उदीयमान अध्यात्मरवि कहानकुंवरने जन्म आपी श्री उजमबा माता, पिताश्री
मोतीचंदभाई अने उमराळाभूमि धन्य बन्यां; अने तेमनी यशोगाथा जैन–ईतिहासना सुवर्णपृष्ठमां
रत्नाक्षरे आलेखाई गई.
अहो! गुरुदेवनो आपणा उपर महान उपकार छे, ते उपकारो तथा गुरुदेवनी महानतानुं
वर्णन अकथ्य छे. मिथ्यात्वमूलक घोर अज्ञानना भयंकर खाडामां अनादिथी सबडता हजारो जीवोने,
सम्यग्दर्शनजनित अनुभवज्ञानना बळ वडे स्व–परनुं तेम ज विश्व–तत्त्वोनुं यथार्थ स्वरूप समजावी,
शाश्वत परमानंदनना पंथे दोर्या, मुक्तिपुरीना पंथनुं मूळ जे कल्याणमूर्ति सम्यग्दर्शन, तेना कारणभूत
मूळ तत्त्वो–सतदेव–गुरु–धर्म, द्रव्य–गुण–पर्याय, नव तत्त्व, निश्चय–व्यवहार, उपादान–निमित्त,
निमित्त–नैमित्तिक संबंध हेय–ज्ञेय–उपादेयनो सम्यक् विवेक, सर्वज्ञस्वभाव अने तदनुरूप स्वतःसिद्ध
वस्तुव्यवस्था, वस्तुस्वातंत्र्य, तथा ते बधामां सारभूत पोतानो ज्ञायकभाव अर्थात् परम
पारिणामिकभावरूप भूतार्थ स्वभाव अने तेनो परम कल्याणकारी आश्रय, वगेरे–सुपात्र जीवोने
हृदय–सोंसरा ऊतरी जाय एवी रीते आगम, युक्ति अने स्वानुभवपूर्वक अत्यंत सरळ तेमज सुबोध
शैलीथी गुरुदेवे समजाव्यां छे. कृपाळु गुरुदेवनी वाणी तत्त्वगंभीर होवा छतां एटली तो स्पष्ट, मधुर
अने सुग्राह्य छे के जेथी तत्त्वोना हार्दनुं भावभासन आसानीथी थई जाय छे, अने खपी श्रोताने,
जाणी के अनुभूतिना द्वार सुधी दोरी जती होय तेवो आनंद आवे छे. गुरुदेवनी वाणीमां भगवान
आत्मा अने तेनी साधनानुं मूळ सम्यग्दर्शन हस्तामलकवत् स्पष्ट भासे छे. आश्रय करवा योग्य
भूतार्थ ज्ञायक स्वभाव, अने तेना आधेयभूत–परम हितकारी सम्यग्दर्शन ते तेमनी वाणी–वीणानो
मुख्य सूर छे.
ए रीते अनादि भवहेतुक अविद्यानो क्षणमात्रमां अंत आणनार परम कल्याणकारी
सम्यग्दर्शननो महिमा तथा मार्ग बतावनार परम तारणहार कहानगुरुदेवनो मंगल जन्मोत्सव कई
विध ऊजवीए!! !
शुं प्रभु चरण कने धरुं, आत्माथी सौ हीन;
ते तो प्रभुए आपीयो, वरतुं चरणाधीन.
हे गुरुदेव! आपना अगाध महिमानुं हृदयथी बहुमान करी, आजना मंगळ दिने श्रद्धा–
सुमनोथी आपने वधावीए छीए, अने अमने आपनां चरणोमां राखी मुक्तिपुरीमां साथे लई जाव
एवी अंतरथी प्रार्थना करीए छीए...