जेमणे ज्ञानानंदस्वरूप एकत्व–विभक्त भगवान आत्मानी अनुभूतिमूलक भेदज्ञानना अमोघ
भक्तजनोने खरेखर अति आनंदोल्लासनो प्रसंग छे. वि. सं. १९४६, वैशाख सुद बिज, रविवारना
मंगल प्रभाते उदीयमान अध्यात्मरवि कहानकुंवरने जन्म आपी श्री उजमबा माता, पिताश्री
मोतीचंदभाई अने उमराळाभूमि धन्य बन्यां; अने तेमनी यशोगाथा जैन–ईतिहासना सुवर्णपृष्ठमां
रत्नाक्षरे आलेखाई गई.
सम्यग्दर्शनजनित अनुभवज्ञानना बळ वडे स्व–परनुं तेम ज विश्व–तत्त्वोनुं यथार्थ स्वरूप समजावी,
शाश्वत परमानंदनना पंथे दोर्या, मुक्तिपुरीना पंथनुं मूळ जे कल्याणमूर्ति सम्यग्दर्शन, तेना कारणभूत
मूळ तत्त्वो–सतदेव–गुरु–धर्म, द्रव्य–गुण–पर्याय, नव तत्त्व, निश्चय–व्यवहार, उपादान–निमित्त,
निमित्त–नैमित्तिक संबंध हेय–ज्ञेय–उपादेयनो सम्यक् विवेक, सर्वज्ञस्वभाव अने तदनुरूप स्वतःसिद्ध
वस्तुव्यवस्था, वस्तुस्वातंत्र्य, तथा ते बधामां सारभूत पोतानो ज्ञायकभाव अर्थात् परम
पारिणामिकभावरूप भूतार्थ स्वभाव अने तेनो परम कल्याणकारी आश्रय, वगेरे–सुपात्र जीवोने
हृदय–सोंसरा ऊतरी जाय एवी रीते आगम, युक्ति अने स्वानुभवपूर्वक अत्यंत सरळ तेमज सुबोध
शैलीथी गुरुदेवे समजाव्यां छे. कृपाळु गुरुदेवनी वाणी तत्त्वगंभीर होवा छतां एटली तो स्पष्ट, मधुर
अने सुग्राह्य छे के जेथी तत्त्वोना हार्दनुं भावभासन आसानीथी थई जाय छे, अने खपी श्रोताने,
जाणी के अनुभूतिना द्वार सुधी दोरी जती होय तेवो आनंद आवे छे. गुरुदेवनी वाणीमां भगवान
आत्मा अने तेनी साधनानुं मूळ सम्यग्दर्शन हस्तामलकवत् स्पष्ट भासे छे. आश्रय करवा योग्य
भूतार्थ ज्ञायक स्वभाव, अने तेना आधेयभूत–परम हितकारी सम्यग्दर्शन ते तेमनी वाणी–वीणानो
मुख्य सूर छे.
विध ऊजवीए!! !
ते तो प्रभुए आपीयो, वरतुं चरणाधीन.
एवी अंतरथी प्रार्थना करीए छीए...