: १२ : आत्मधर्म: २३६
रजकण के रिद्धि वैमानिक देवनी,
सर्वे मान्या पुद्गल एक स्वभाव जो.
आत्माना परमात्मस्वभावनी भावना
करता करता भगवान राग दशाने उल्लंघी गया.
शुभरागना कणियाने छोडीने भगवान अप्रमत्त
आत्मध्यानमां लीन थईने चैतन्यना अतीन्द्रिय
आनंदमां मशगुल थया. त्यारे एक साथे सातमुं
गुणस्थान तेमज चोथुं ज्ञान तेमने प्रगट्युं.
२३. अकषायी चिदानंद स्वरूपने साधता
साधता भगवान एवी भावनारूपे परिणमी थया
छे के–
क्रोध प्रत्ये तो वर्ते क्रोध स्वभावता,
मान प्रत्ये तो दीनपणानुं मान जो.
माया प्रत्ये माया साक्षीभावनी,
लोभ प्रत्ये नहीं लोभ समान जो.
क्रोध–मान–माया–लोभथी पार चिदानंद
तत्त्वना शांतरसनां वेदनमां भगवान मशगुल
थया. –एनुं नाम मुनिदशा.
२४. मुनिदशामां झुलता भगवान
जगतथी उदासीन थया छे, क्रोधादि ते अमारा
स्वभावमां नथी; अमे तो क्षमाना ने शांतरसना
भंडार छीए. उपसर्गं अने परिषहोने साक्षीभावे
सहन करवा अमे तैयार छीए, –आवी दशा
भगवानने वर्तती हती.
२प. अरे, केवळज्ञान पासे अमारी
पामरता छे. पण अमे दीन नथी, अमे तो
चैतन्यना साधक संत छीए–मुनि छीए. जगतनी
अनुकूळता के प्रतिकूळता उपर राग–द्वेष करवानुं
अमारामां नथी. अमारो कारण परमात्मा ज
अमारुं अवलंबन छे, तेना अवलंबने अमारी
परमात्मदशा प्रगटशे.
२६. वळी भगवाननी मुनिदशा केवी
हती? तेनी भावना भावतां दीक्षावनमां गुरुदेव
घणा वैराग्यरसथी कहे छे के–
बहु उपसर्ग कर्ता प्रत्ये पण क्रोध नहि,
वंदे चक्री तथापि न मळे मान जो,
देह जाय पण माया थाय न रोममां;
लोभ नहि छो प्रबळ सिद्धि निदान जो.
अहो, आवी मुनिदशानी भावना भाववा जेवी
छे.
२७. वळी, ए धन्यदशानी भावनाने
उत्कृष्टपणे मलावतां गुरुदेव कहे छे के–
एकाकि विचरतो वळी स्माशानमां,
वळी पर्वतमां सिंह वाघ संयोग जो;
अडोल आसन ने मनमां नहि क्षोभता,
परम मित्रनो जाणे पाम्या योग जो.
२८. अरे, आवा आत्मध्यानमां क््यारे मग्न थशुं?
चैतन्यना आनंदना अमृतकुंडमां क््यारे लीन थशुं?
शांतिनाथ वगेरे तीर्थंकरो चक्रवर्तीना वैभव वच्चे
रहेला त्यारे पण आवी भावना भावता हता.
२९. पछी भगवानने वैराग्य थतां ज्यारे
देक्षा ल्ये छे ने पाछळ स्त्रीओ विलाप करे छे त्यारे
भगवान कहे छे के: अरे, राणीओ हुं मारा रागने
कारे रोकायो हतो; मारो ए राग हवे मरी गयो
छे. हवे अमे कोईना बंधनमां अटकवाना नथी.
अरे, राणीओ! तमारा रागना विलाप अमने
ओगाळी शकशे नहि के अमने रोकी शकशे नहि.
३०. चैतन्यना आनंदमां लीन थतो आत्मा
ज्यां वैराग्यथी ऊछळ्यो त्यां जगतना परिषहोनी
प्रतिकूळता तेने बाळी शकशे नहि, के जगतनी
अनुकूळताना गंज तेने गाळी शकशे नहि.
३१. महावीर भगवान तो बालब्रह्मचारी
हता. दीक्षा वखते माताने आघात लागे छे त्यारे कहे
छे के हे माता! तमे रजा आपो! तमे पुत्रमोहने
छोडो. आ संसारमां कोण पुत्र ने कोण माता! अमे
तो अमारी शुद्धपरिणतिरूपी माता पासे जशुं ने
केवळज्ञानरूप पुत्र थशुं. पछी माता पण रजा आपे
छे के पुत्र! धन्यतारो अवतार! ने धन्य तारी
भावना!! तीर्थंकर थईने जगतनो उद्धार करवा
तारो अवतार छे.
३२. भगवान महावीरे आजे अस्थिरतानो राग
तोडीने चिदानंदस्वरूपमां लीनतारूप मुनिदशा
प्रगट करी.