Atmadharma magazine - Ank 236
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १४: आत्मधर्म: २३६
४८. प्रभु! आ तारी प्रभुतानी वात छे. आ परमात्मपुराण वंचाय छे; सात दिवसनी
परमात्मानी पारायण बेठी छे.
४९. साधकभक्तो कहे छे: हे भगवान! आपना कहेला स्याद्वादने में अत्यारसुधी जाण्यो न
हतो; पण हवे तेनुं भान थतां विकारथी भिन्न मारुं चिदानंदतत्त्व मने भास्युं, ने तेनी रुचि थई,
आस्रव–बंध भावोने माराथी विपरीत विभावरूप समजीने हवे तेनी रुचि में छोडी. –आ रीते हे
नाथ! आपना मार्गनी मने प्राप्ति थई.
प०. अज्ञानदशामां पोतानी भूल पर उपर ढोळीने, बीजानो वांक काढीने में घोर अपराध कर्यो, ने
मारा स्वभावने तेमज मारी भूलने हुं भूल्यो, पण हे प्रभो! हवे आपना उपदेशथी मारी भूल मने
समजाणी ने भूल वगरनो–विकार वगरनो मारो स्वभाव में जोयो–एटले आपनो कहेलो जैनधर्म शुं छे ते
हवे में जाण्युं.
प१. जैनधर्म कर्मवादी नथी, पण आत्मवादी छे; ते आत्मानी अनंतशक्ति बतावीने, कर्मने
आत्माथी भिन्न बतावे छे. कर्म छे खरुं पण कर्म ज जीवने रागादि करावे छे–ए वात जैनदर्शनमां नथी.
प२. विकार करे पोते ने दोष ढोळे कर्म उपर, एटले पोते तो महंत रहेवा मागे छे ने पोतानी
भूल बीजा उपर नाखे छे; तो ए मोटी अनीति करे छे. जैनधर्मने समजे तो एवी अनीति संभवे
नहि, – एम पं. टोडरमलजी मोक्षमार्ग प्रकाशकमां कहे छे.
प३. हुं ज्ञानानंद स्वरूप छुं–एवो अभिप्राय जामी जाय, ने ‘रागादि हुं’ –अुवी तन्मयबुद्धि
छूटी जाय–एनुं नाम भेदज्ञान छे.
प४. ते भेदज्ञानना काळे आत्माना परिणमननी दिशा पलटी जाय छे: जेम कोई माणस अजाणपणे
कोईने स्त्री समजीने विकार करतो होय, पण ज्यां भान थयुं के आ तो मारी माता छे. –अरे, मारी जनेता!
एम भान थतां विकारबुद्धि छूटी जाय छे ने माता प्रत्येनो निर्विकार आदरभाव जागे छे. तेम अज्ञानभावे
रागादि विकारने पोतानी स्वपरिणति समजीने तेना प्रत्ये लीनताथी रुचि–प्रेम करतो हतो, पण ज्यां भान
थयुं के अरे, हुं तो चैतन्य, आ राग हुं नहि–एवुं भान थतां वेंत ज फडाक करती विकारना प्रेमनी बुद्धि छूटी
जाय छे ने चैतन्य स्वभाव प्रत्ये निर्विकार प्रेम अने आदर जागे छे. आ रीते अभिप्राय पलटतां वेंत ज
परिणतिनी दिशा पलटी जाय छे. स्वभाव तरफ झूकवानी अने विकारथी पाछा वळवानो एक ज काळ छे.
पप. जेम सतिना हृदयमां बीजो पति होय नहि; तेम साधक संतना हृदयमां विकारनी प्रीति
स्वप्नेय होय नहि.
प६. भाई, संतो तने तारा स्वभावनी अपूर्व वात समजावीने मोक्षनां तिलक करे छे.
सिद्धपदने साधवाना आ अवसर आव्या छे.
प७. प्रभो! विकारनी रुचि छोडीने स्वभावने साधवानो आ काळ छे. ‘हमणां नहि ने पछी
करशुं’ एवी मुदत न मारीश.
प८. अरे, आवा अवसरमां जो आत्मभान न कर्युं ने बीजा शुभना कार्यो गमे तेटला क््यां तो
पण तेणे कांई कर्युं नथी, तेना हाथमां कांई नहि आवे. अने जेणे भेदज्ञान प्रगट कर्युं तेणे बधुं कर्युं,
तेना हाथमां सिद्ध भगवान आवी जवाना.
प९. कुंदकुंदचार्यदेव प्रवचनसारनी शरूआतमां कहे छे के चारित्रदशा अंगीकार करीने हुं मारी
मोक्षलक्ष्मीने वरवा नीकळ्‌यो छुं तेमां अनंता सिद्ध भगवंतोने में मारी साथे राख्या छे. हवे मारी
मोक्षदशा प्राप्त करवामां वच्चे विघ्न आवे नहि. अप्रतिहतपणे मोक्षदशा लीधे छूटको.
६०. अंतर्वृत्तिमां आनंद छे, बहिर्वृत्तिमां दुःख छे. एवो भेद ज्यां जाण्यो त्यां अंतर्वृत्ति थई ने
रागनी प्रीतिरूप बहिर्वृत्ति छूटी.
६१. जो अंतर्वृत्ति न थाय ने बहिर्वृत्ति न छूटे