जेठ: २४८९ : १प:
तो तेणे खरेखर आत्माना आनंदस्वभावने अने रागादिना दुःखपणाने जाण्युं ज नथी.
६२. ज्यां चिदानंदनो प्रेम जाग्यो ने रागनो प्रेम छूटयो त्यां निर्विकार सम्यग्ज्ञानप्रकाशथी
आत्मा झळहळी ऊठ्यो–एनुं नाम भेदज्ञान ने ते अपूर्व धर्म छे.
६३. भगवान महावीर परमात्माने आजे (पंचकल्याणकमां) केवळज्ञान थयुं. आजे वै. शुद
१२मां वै. सु. १० नो आरोप करीने आजे ज केवळज्ञान थयुं एम स्थापवामां आवे छे.
६४. केवळज्ञान पछी ६६ दिवसे भगवाननी वाणी अखंड सर्वप्रदेशेथी नीकळी. ते अखंड रहस्य
लेती आवे छे.
वगेरेनुं स्वरूप समजाव्युं छे. ने तेनो बधानो सार शुद्धआत्मा छे–एम बताव्युं छे.
६६. भगवाननी वाणीमां दरेक पदार्थनी स्वतंत्रतानो ढंढेरो छे. दरेक द्रव्य स्वतंत्र, तेनामां
पोतपोताना अनंत गुणो स्वतंत्र, तेनामां पोतपोताना अनंत गुणो स्वतंत्र, छे. आवी स्वतंत्रतामां
स्वद्रव्यनो आश्रय छे, ते भगवाननी वाणीनो सार छे.
६७. शांतिथी आत्मार्थी थईने जे निजहित करवा मागतो होय तेने माटे भगवाननो उपदेश
छे, भगवाननो उपदेश चौगतिने हरनारो ने सिद्धपदने देनारो छे.
६८. जगतना बधाय तत्त्वो स्वकार्य सहित छे, तेथी बीजो कोई तेना कार्यने करे एम बनतुं
नथी. एक पदार्थ बीजा पदार्थनुं कांई कार्य करे एवी वस्तुनी मर्यादा नथी.
६९. हवे, अंदरमां शुभाशुभभाव थाय तेनी मर्यादा पण विकार जेटली छे, धर्ममां तेनो जराय
प्रवेश नथी. एटले ते शुभाशुभभाव वडे धर्म थाय एम बनतुं नथी.
७०. अज्ञानी रागने निजकार्य मानीने तेनो आदर करे छे ने चिदानंद स्वभावनो अनादर करे
छे. एनुं नाम अधर्म छे.
७१. भाई, सांभळ! विकारना स्वादमां तारा चैतन्यनी मीठास नथी, शांति नथी, तेमां तो
आकुळता छे. तारो चैतन्यस्वाद एनाथी जुदो छे, तेमां निराकुळ शांति छे.
७२. जेने चैतन्यनो स्वाद लाग्यो तेनी रुचि बीजा स्वादना वेदनमांथी हटी जाय छे ने
चैतन्यस्वादनो ज आदर–सत्कार–प्रीति–रुचि तेने थाय छे. एनुं नाम भेदज्ञान.
७३. आवुं भेदज्ञान थतां अनादिनुं अज्ञान छूटी जाय छे, जेणे आवुं भेदज्ञान कर्युं ते मोक्षना
मार्गमां आव्यो, ते भगवानना पंथमां आव्यो.
७४. भगवान आत्मा आनंदतत्त्व छे, रागादि विकार ते दुःख छे. –ए बंनेना लक्षणो अत्यंत
जुदे जुदा छे.
७प. प्रत्यक्ष स्वसंवेदनथी आत्मा पोते पोताने अनुभवमां आवे एवी प्रकाश शक्ति आत्मामां
छे. तेन स्वसंवेदन माटे रागनुं अवलंबन नथी. सम्यग्दर्शन थतां ज्ञानी पोताना आत्माने रागना
अवलंबन वगर स्वयं प्रत्यक्ष स्पष्ट अनुभवे छे; ए अनुभव निःशंक छे, अतीन्द्रिय छे. एवो
अनुभव थतां संसारनी जड ऊखडी जाय छे, ने मोक्षना माणेकस्थंभ रोपाय छे.
७६. ज्यां ज्ञाननी रुचि करीने ज्ञानस्वभाव तरफ ज ज्ञान वळ्युं त्यां कर्मबंधन अटकी गयुं.
ज्ञाननी रुचि थई त्यां कर्मबंधन अटकी गयुं.
७७. जो ज्ञानमां रागनो आदर होय तो ते ज्ञान खरेखर ज्ञान ज नथी पण अज्ञान ज छे.
ज्ञान ज्यारे पुण्य–पापथी जुदुं पडीने स्वभावमां एकतापणे प्रवर्ते त्यारे ज ते खरुं ज्ञान छे, ने
ज्ञानमां आस्रवोनो अभाव ज छे, ते ज्ञानने बंधन नथी.
७८. भाई, भगवान चैतन्यराजा अनादिथी रीसाणो छे तेने रीझववानी आ वात छे. विकार
परिणतिरूप कुलटानी प्रीति करतां सम्यक् परिणति रीसाई गई छे; चिदानंद स्वभावनो आदर करवो
ने रागनो आदर छोडवो ते सम्यक्परिणतिने रीझावावनी रीत छे.