Atmadharma magazine - Ank 236
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १६: आत्मधर्म: २३६
७९. अहा, जुओ तो खरा आ वीतरागनी वाणी! चैतन्यनो अभ्यास न होय एटले अघरुं
लागे, पण पोताना स्वघरनी वात छे ते सत्समागमे चैतन्यना परिचयथी सुगम थाय छे.
८०. भगवान कहे छे के सांभळ! मोक्षपुरीना पंथमां तारे अमारी साथे आववुं होय तो
चिदानंदस्वभावनी सन्मुखतानो पुरुषार्थ करजे. अमारा सार्थवाहमां पुरुषार्थहीन जीवोनुं काम नथी.
स्वसन्मुख पुरुषार्थने अमारो पंथ छे.
८१. रागनो आदर करीने जे जीव अटक्यो ने चैतन्य स्वभाव तरफनो पुरुषार्थ न कर्यो ते जीव
कायर छे, एवा कायर जीवोनुं अमारा मार्गमां काम नथी.
८२. रागने मोक्षनुं साधन मानीने तेमां जे एकत्वबुद्धिथी अटकी जाय छे ने रागथी भिन्न
ज्ञानने ओळखता नथी –एवा जीवो क्रियाकांडमां के शुष्कज्ञानमां ज राचे छे.
८३. आत्मा ज्ञाता छे, तेमां अंतर्मुख थतां रागथी भिन्न परिणमन थाय छे. एवा
ज्ञानपरिणमनने ज अहीं भेदज्ञान कह्युं छे.
८४. जे ज्ञान दुःखरूप आस्रवोथी छूटीने आत्माना आनंदमां आव्युं न होय तेने ज्ञान कहेता
नथी, ते अज्ञान ज छे.
८प. जे भेदज्ञान छे ते चैतन्यस्वभाव तरफ वळेलुं छे ने आस्रवो आस्रवोथी पाछुं वळेलुं छे. –
एवुं ज्ञान ते मोक्षनुं कारण छे.
८६. ज्ञाननी वातो करे पण ज्ञानरूप परिणमन न करे तो ते जीव शुष्कज्ञानी छे. एक क्षणनुं
भेदज्ञान जीवने अपूर्व आनंदनो अनुभव करावे छे, ने अल्पकाळमां मोक्ष पमाडे छे.
८७. चैतन्यनी गति अगाध छे, ते अगाधगतिनो पार रागथी पामतो नथी. व्रत–तप वगेरे
रागनुं फळ तो संसारमां ज छे, ते कांई मोक्षनुं साधन थतुं नथी.
८८. अंतरस्वभाव तरफ वळेलुं ज्ञान ज मोक्षनुं कारण थाय छे. ते ज्ञान बंधभावोथी छूटुं पड्युं
छे ने आनंदमां एकमेक थयुं छे. ज्ञान तेने कहेवाय के जे आस्रवोथी निवर्ते ने स्वभावमां प्रवर्ते.
८९. परपरिणतिने छोडतुं ने चिदानंद तत्त्वने वेदतुं जे ज्ञान प्रगट थयुं, अहो! ते ज्ञानमां
विकार साथे कर्ताकर्मपणानो अवकाश क््यां छे? अने तेने बंधन पण केम होय? ते ज्ञान विकारनुं
अकर्ता थईने अबंधपणे मोक्षमार्गमां प्रवर्ते छे; ते कल्याणरूप छे ने ते मोक्षनुं साधन छे.
९०. जुओ, आ पंचकल्याणकमां आत्माना कल्याणना अपूर्व वात छे. जेणे आ वात समजीने
पोतामां आवुं भेदज्ञान प्रगट कर्युं तेणे पोतामां अपूर्व मंगल कल्याण कर्युं.
९१. अरे, आ चार गतिनां दुःखो ते केम टळे ने चैतन्यनी शीतळ शांतिनो स्वाद केम आवे–
तेनी वात जीवे कदी प्रीतिथी सांभळी नथी. एकवार आ वात सांभळीने लक्षगत करे तो अल्पकाळमां
भवनो अंत आवी जाय, ने परमानंद दशा प्राप्त थाय.
९२. भेदज्ञान साबु भयो, समरस निर्मळ नीर, धोबी अंतर आत्मा धोवे निजगुण चीर.
जुओ, आ धर्मात्माधोबी भेदज्ञानरूप साधु वडे, चैतन्यना परम शांत रसरूप जळथी निजगुणरूपी
वस्त्रो धोईने उजवळदशा प्रगट करे छे.
९३. भेदज्ञाननी भावना वडे मोहना मेलने धर्मात्माए धोई नाख्यो छे, अंदरमां पोताना
आत्माने शुद्ध चैतन्यरसथी भरेलो अनुभवे छे; ते सम्यक् विद्या छे.
९४. भेदज्ञान ते ज साचुं ज्ञान छे. राग अने चैतन्यनी भिन्नताना वेदनरूप भेदज्ञान ते ज
मोक्षना साधनरूप साचुं ज्ञान छे; एना विना वकील–डोकटर वगेरे बधानां भणतर ते कुज्ञान छे; अरे,
शास्त्रनां भणतरने पण भेदज्ञान वगर सम्यग्ज्ञान कहेता नथी.