जेठ: २४८९ : १७:
९प. भाई, भेदज्ञान वगर बीजा बधा साधन (शुभरागना) तें अनंतवार कर्या पण तेनाथी
तारुं कल्याण किंचित् न थयुं. तो हवे संत पासे जईने कल्याणनो साचो मार्ग अंतरमां शोध.
९६. निजस्वरूपने भूलीने अज्ञानी अनंतकाळथी चारगतिमां हेरान थई रह्यो छे, तेने संत–
महंत समजावे छे के हे जीव! तारा निजघरमां तो आनंद भर्यो छे, विकार तारा निजघरमां भर्यो नथी
माटे अंतरमां उपयोग मूक तो तने तारा आनंदनुं संवेदन थाय.
९७. आ चैतन्यभगवान आत्मा विकारथी पोतानी भिन्नतानुं ज्ञान करीने ज्यां जाग्यो त्यां ते
ज्ञाता ज रहे छे–ज्ञानभावमां ज तन्मयपणे परिणमे छे, विकारमां जराय तन्मय ते थतो नथी.
९८. सम्यग्द्रष्टिना अंतरमां ज्ञानसूर्य झळक््यो, तेना चैतन्यप्रकाशमां विकाररूपी अंधकार होय
नहि. जेम सूर्यमां अंधकारनुं कर्तृत्व नथी, तेम ज्ञानप्रकाशी चैतन्यसूर्यमां विकारनुं कर्तृत्व नथी.
९९. ज्यां आवुं भेदज्ञान करतो भगवान आत्मा जाग्यो त्यां अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद
आव्यो ने कर्मो साथेनो संबंध तूटी गयो. आत्मा निजपरिणतिमां रमवा लाग्यो.
१००. अहा, भेदज्ञान थयुं... ने... आत्मामां शांतिनो सागर उछळ्यो... शमरसनो स्वाद
अनुभवमां आव्यो... आत्मा जाणे सिद्धभगवाननी पंक्तिमां बेठो. अहा, आवी ज्ञानकळा जेना घटमां
जागी ते धर्मात्मा जगतमां सहज वैरागी छे, एनो आत्मा वैराग्यरसमां परिणमी गयो छे, हवे
जगतना विषयोमां तेनी रुचि लागे नहि. –आवा साक्षात् धर्मात्मानी ओळखाण पण घणी पात्रताथी
कोई भाग्यवान जीवोने थाय छे.
१०१. धर्मात्माने निजगुणनो रंग लाग्यो तेमां हवे कदी भंग पडवानो नथी. राग साथेनी
एकताने तोडतो चैतन्य भगवान जाग्यो ते निजगुणरूपी रत्नोने साधतो पूर्ण अतीन्द्रिय आनंद प्रगट
जोरावरनगरमां पंचकल्याणक प्रसंगे अध्यात्म–
रत्नोनी जोसदार वृष्टि करीने चैतन्य रत्ननी
प्राप्तिना किमिच्छक दान देनार भारतना
अजोड रत्न कहानगुरुने नमस्कार हो.
सू... क्ष्म... बु... द्धि
सूक्ष्मबुद्धि तेने कहेवाय के जे बुद्धि अंतमुर्ख थईने
अतीन्द्रियस्वभाव तरफ झूके. स्थूळ परभावोमां वर्ते ते बुद्धि
सूक्ष्म नथी. घणी ज धीरजथी, घणी ज निराकुळताथी ज्ञानने
अंतरमां वाळीने चैतन्यनो बोध करे ते ज सूक्ष्मबुद्धि छे.
सूक्ष्मबुद्धि कहो के सम्यक्बुद्धि कहो. अमाप ज्ञाननुं माप एवी
सूक्ष्मबुद्धिथी ज आवी शके छे.
(प्रवचनमांथी)