: १८: आत्मधर्म: २३६
प्रभो! तारा पंथे आवुं छुं
(वींछीयाना प्रवचनमांथी: चैत्र वद ११ सं. २००९)
जेने धर्म करवो छे, जेने शुद्धात्मानो अनुभव करवानी धमश जागी छे, एवा शिष्यने
आचार्यदेव तेनी रीत बतावे छे. भाई, जे आ बंधन अने अशुद्धताना भावो छे ते क्षणिक अने उपर–
उपरना अवस्था पूरता छे, ते कांई तारा मूळ चिदानंदस्वभाव साथे एकमेक नथी; तेथी शुद्धनयवडे
अंदर भूतार्थ स्वभावनी समीप जतां ते अशुद्धता रहित आत्मानो अनुभव थाय छे. शुद्धनयना
अनुभवमां ते अशुद्धभावो, भेदो के संयोगो भेगा आवता नथी. शुद्धात्मानी अनुभूतिनो मार्ग जुदो
छे ने बंधननो मार्ग जुदो छे. नवे तत्त्वना मार्ग एटले नवे तत्त्वना लक्षण भिन्नभिन्न कहेवामां आव्या
छे.
भगवान! तारो स्वभाव एकांत बोधबीजरूप छे; एवा स्वभावनी पासे जा... तो तने
शुद्धात्मानी अनुभूति थशे. भाई, बीजुं तो तें अनंतवार कर्युं पण आवा आत्मानी अनुभूति पूर्वे कदी
डरी नथी. तारे जन्म–मरणना फेरा मटाडवा होय तो आवा आत्मानुं अवलोकन कर. अंतरमां जो...
तो त्यां अंधारा नथी, अंदर तो चैतन्य प्रकाशनो पूंज छे–जे स्वयं बधाने जाणे छे. ‘अधारुं छे’ –एम
जाणनार पोते अंधारारूप छे के चैतन्य प्रकाशरूप छे? चैतन्य प्रकाश वगर अंधाराने जाण्युं कोणे?
अहीं तो आचार्यदेव कहे छे के भाई, एकवार शुद्धनयवडे विभावथी जुदो पडीने स्वभावमां एकाकार
या तो तारो आत्मा तने शुद्धपणे अनुभवमां आवशे.
आवो मनुष्य अवतार पामीने सत्समागमे आत्मानी ओळखाण करवा जेवी छे. आत्मानुं
भान सूक्ष्म अने अपूर्व छे, परंतु पात्र थईने अंतरनी रुचिवडे सत्समागमे जे करवा माटे तेने
आत्मानुं भान थई शके छे. जुओ भाई, स्त्रीपर्यायमां आठ वर्षनी बाळाने पण आवुं आत्मज्ञान
थई शके छे. आत्मा क््यां स्त्री के पुरुष छे? अत्यारे पण अमुक आत्मा छे के स्त्री पर्यायमां होवा छतां
आत्मानुं अलौकिक भान अने पूर्व भवनुं ज्ञान वर्ते छे... ‘अमे स्त्री छीए, अमाराथी न थई शके’
एम न मानवुं जोईए. आत्मामां अनंती ताकात छे. घणीवार कहेवाय छे के:–
ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण, केवळी बोले एम;
प्रगट अनुभव आत्मा... निर्मळ करो... सप्रेम रे...
चैतन्यप्रभु! प्रभुता तारी रे तारा धाममां...
अंतरना चैतन्यधाममां अनंतगुणनी प्रभुता भरेली छे... सर्वज्ञता ने पूर्ण आनंद प्रगटे
छे ते क््यांथी आवे छे? अंदरना स्वभावमां ताकात भरी छे तेमांथी ज ते प्रगटे छे. ज्यां भर्युं
होय त्यांथी प्रगटे. माटे हे जीव! तुं एम श्रद्धा कर के आवा पोताना स्वभावमां द्रष्टि देवा जेवी
छे. पहेलां आ वात लक्षमां ले... विचारमां ले... ने अंदर अनुभवमां ले... तो तने अपूर्व शांति
ने आनंद थाय.
तारा ज्ञाननो अनुभव तारा ज्ञानवडे ज थाय छे, बीजा वडे थतो नथी. जेम शरीरना टाढा–
उना र्स्पशनो